नगर निगम फरीदाबाद का चुनावी रणक्षेत्र
वार्ड नंबर-14 में बिछी राजनैतिक बिसात
भाजपा टिकट की दावेदारी में सरदार जसवंत सिंह तथा संदीप कौर उर्फ रीटा आमने-सामने
मैट्रो प्लस
फरीदाबाद, 18 दिसम्बर (नवीन गुप्ता): एक लम्बे अंतराल के बाद नगर निगम चुनावों का बिगुल एक बार फिर बज चुका है। निगम के 40 वार्डो से पार्षद बनने के इच्छुक प्रत्याशियों ने इसके लिए जहां अपनी-अपनी जोर आजमाईश शुरू कर दी है, वहीं पार्टी टिकट पर लडऩे के इच्छुक दावेदारों ने भी टिकट लेने के लिए पूरा जोर लगा रखा है खासतौर पर भाजपा की टिकट के लिए।
नगर निगम चुनावों की शुरूआत करते हुए अब हम बात करते हैं बडख़ल विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत एन.एच.-5 वाले वार्ड नंबर-14 की तो यहां से भाजपा की टिकट की दावेदारी के लिए जो नाम सामने आ रहे हैं उनमें सरदार जसवंत सिंह तथा संदीप कौर उर्फ रीटा का नाम मुख्य है। इन दोनों ने टिकट के लिए पूरा जोर लगा रखा है। इन दोनों के अलावा गैर-भाजपा से जो लोग चुनाव जीतकर पार्षद बनना चाहते हैं उनमें पूर्व मंत्री ए.सी. चौधरी की पुत्रवधु रोनिका चौधरी, पूर्व पार्षद नरेश गोंसाई, सतनाम सिंह मंगल, आशा कथूरिया तथा विनोद चोपड़ा उर्फ गोरा के नाम मुख्य रूप से शामिल हैं।
उपरोक्त में से रोनिका चौधरी पूर्व मंत्री ए.सी. चौधरी के पुत्र विनय चौधरी के पुत्र की धर्मपत्नी है जिसको ए.सी. चौधरी अब अपनी विरासत के रूप राजनैतिक तौर पर तैयार कर रहे हैं। हालांकि पहले चौधरी ने अपने पुत्र विनय चौधरी को अपने उत्तराधिकारी के रूप में मैदान में उतारते हुए उसकी राजनैतिक गतिविधियां शुरू करवाई थी, लेकिन एकाएक विनय की जगह उन्होंने विनय की पत्नी रोनिका को निगम चुनावों के मैदान में उतार दिया। किसी की समझ में नहीं आ रहा है कि ऐसा कर चौधरी क्या साबित करना चाहते है। कांग्रेस पृष्ठभूमि वाले चौधरी वैसे तो गत् विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को छोड़कर इनेलो में शामिल हो गए थे तथा उस समय विधानसभा चुनावों में इनेलो प्रत्याशी चंदर भाटिया का खुला साथ दिया था। वो बात अलग है कि वो चंदर को जिता नहीं पाएं और उसके बाद चौधरी चुपचाप राजनैतिक सन्यास लेते हुए अपने घर बैठ गए थे। निगम चुनावों के मद्देनजर कुछ समय पहले कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर के समक्ष दोबारा से चौधरी कांग्रेस में शामिल हो गए और अपने साथ विनय को अपने राजनैतिक कार्यक्रमों में अपने राजनैतिक उत्तराधिकारी के रूप में ले जाते रहे। लेकिन अब उन्होंने एकाएक निगम चुनावों में विनय की बजाए घर में रहने वाली अपनी पुत्रवधु को निगम चुनावों में उतारा है।
वहीं चौधरी को पटखनी देने के लिए पिछले कुछ समय पहले तक उनके नवरत्नों में शामिल रहे खास रत्न पूर्व पार्षद नरेश गोंसाई ने भी चुनाव जीतने के लिए पूरा जोर लगा रखा है। सामान्य वार्ड होने के चलते इस बार गोंसाई एक बार खुद चुनावी मैदान में उतर आया है। अंतर सिर्फ इतना है कि अब से पहले गोंसाई परिवार को चुनावों में जो जीत हासिल होती थी वो ए.सी. चौधरी के आर्शीवाद से ही होती थी चाहे वह नरेश गोंसाई हो या फिर उसकी धर्मपत्नी चारू गोंसाई। दोनों को ही चुनाव जिताने में ए.सी.चौधरी का आर्शीवाद रहा है। यहीं नहीं, चौधरी ने तो एक बार नरेश गोंसाई को नगर निगम सदन में उस समय पार्षद मनोनीत करा दिया था जब वो प्रताप सिंह चावला से चुनाव हार गया था। लेकिन अब अलग है। एन.एन.-5 के क्षेत्र को अपनी बपौती समझे बैठे नरेश गोंसाई के पर काटते हुए चौधरी ने जब नरेश के सामने इन चुनावों में अपने पढ़े-लिखे पुत्र विनय चौधरी को निगम चुनाव में उतारने की बात रखी तो उसी दिन से चौधरी और गोंसाई के बीच 36 का आंकड़ा हो गया तथा दोनों एक-दूसरे के दुश्मन बन बैठे। नतीजा यह निकला कि आज जब नगर निगम चुनावों की घोषणा हो चुकी है तो ए.सी.चौधरी ने जहां अपने पुत्र विनय की बजाए उसकी पत्नी रोनिका चौधरी को चुनाव में खड़ा करने की घोषणा कर दी है वहीं नरेश गोंसाई भी चुनाव लडऩे के लिए मैदान में आ चुका है और घर-घर जाकर चुनाव प्रचार भी शुरू कर दिया है।
अब यदि हम यहां बात करें इनकी छवि की तो रोनिका चौधरी की मार्किट में अपनी कोई पहचान नहीं हैं। चौधरी प्रेमियों के अलावा उन्हें कोई जानता-पहचानता नहीं है। रोनिका को जो वोट मिलेगी वो अपने ससूर एसी चौधरी के नाम पर ही मिलेगी। इसकी शुरूआत करते हुए चौधरी ने आज दोपहर को अपने निवास पर एक माता की चौकी का आयोजन कर अपने समर्थकों के सामने रोनिका को चुनावी रणक्षेत्र में उतारने की अपनी मंशा दिखाई। माता की चौकी के लिए जो निमंत्रण भेजे गए वो भी रोनिका के नाम से ही भिजवाए गए।
जहां तक नरेश गोंसाई की छवि का सवाल है तो मार्किट में गोंसाई की छवि कोई खास नहीं है। नरेश गोंसाई शुरू से ही विवादों में रहा है। मार्किट में दुकानें बनाने व तुड़वाने के नाम पर अपने ही आदमियों तक से मोटी रकम वसूलने के आरोप उस पर एक बार नहीं कई-कई बार सार्वजनिक रूप से लगते रहे हैं। ऐसे में इस बार ए.सी.चौधरी की खिलाफत कर चौधरी की ही पुत्रवधु के सामने चुनाव लड़कर जीतना गोंसाई के लिए इतना आसान नहीं है जितना वो समझ रहा हैं। मजेदार बात तो यह कि जिन समर्थकों के बल पर वो चुनाव लड़ रहा है उनमें से ज्यादातर दिल से उसके साथ नहीं हैं, तजबूरी में उसके साथ है। यहीं नहीं, मौका मिलने पर वो पीछे से उसकी जड़ खोदने में कोई कसर भी नहीं छोड़ते हैं। ऐसे में गोंसाई की एक बार फिर बगैर चौधरी के आर्शीवाद के पार्षद बनने की राह आसान नहीं हैं।
रही बात संदीप कौर और सरदार जसवंत सिंह की तो भाजपा की टिकट की दौड़ में अब तक तो जसवंत सिंह का नाम आगे चल रहा है जबकि संदीप कौर का दूसरे नंबर पर। सरदार जसवंत सिंह जहां प्रचार-प्रसार से दूर रहते हैं वहीं संदीप कौर इस मामले में कुछ ज्यादा ही तेज है। दिखावे में संदीप कौर का जहां कोई मुकाबला नहीं हैं वहीं सरदार जसवंत सिंह अपने आपको भाजपा का संभावित उम्मीदवार बताते हुए फिलहाल सिख समुदाय में जाकर सिखों की ही वोट मांग रहे हैं।  -क्रमश:

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