हरियाणा के 8500 प्राइवेट स्कूलों में से मात्र 252 ने जमा कराया है फार्म-6
मैट्रो प्लस से नवीन गुप्ता की रिपोर्ट
फरीदाबाद, 20 दिसम्बर:
प्राईवेट स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों के अभिभावकों को स्कूल संचालकों की लूट-खसोट से बचाने के लिए तथा हरियाणा के सभी प्राइवेट स्कूलों के पिछले 10 साल की आमदनी-खर्चे और खातों की सीएजी से जांच कराएं जाने को लेकर अभिभावक एकता मंच अब पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करने जा रहा है। यह फैसला मंच ने इसलिए लिया है ताकि लाभ में होते हुए भी प्राईवेट स्कूलों द्वारा हर साल बढ़ाई जाने वाली फीस की वैधानिकता की जांच हो सके।
वहीं दूसरी तरफ हरियाणा के शिक्षा निदेशक ने गुरुवार को रिमाइंडर के रूप में तीसरा आदेश निकालकर सभी प्राइवेट स्कूल संचालकों से 31 दिसंबर तक ऑडिट रिपोर्ट व बैलेंस शीट के साथ फार्म-6 जमा कराने को कहा है। साथ ही ऐसा न करने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने की बात कही है। वहीं शिक्षा विभाग के इन आदेशों पर अभिभावक एकता मंच ने कहा है कि यह चोर से कहे चोरी कर, शाह से कहे सावधान रहे के समान है। मंच के प्रदेश महासचिव कैलाश शर्मा ने कहा है कि शिक्षा निदेशक ने 2018 में भी ऐसा ही एक आदेश निकाला था जिसकी पालना में सिर्फ 600 प्राइवेट स्कूलों ने फार्म-6 जमा कराए थे, वह भी बिना ऑडिट रिपोर्ट व बैलेंस शीट के।
उस समय मंच ने इसकी शिकायत कर दोषी स्कूलों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने की मांग की थी, लेकिन आज तक उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है। ऐसे हालात में शिक्षा निदेशक के इस विषय पर इसी महीने 2 दिसंबर व 18 दिसंबर को भेजे गए इन दो आदेश पत्रों का स्कूल प्रबंधक कितनी पालना करते हैं और पालन न करने वाले स्कूल प्रबंधकों के खिलाफ शिक्षा विभाग क्या कार्रवाई करता है, यह सब देखने की बात है।
मंच के जिला सचिव डॉ० मनोज शर्मा ने कहा है कि फार्म-6 सरकार द्वारा प्राइवेट स्कूल संचालकों को दिया गया वह लाइसेंस है जो उनको सुरक्षा कवच प्रदान करता है। स्कूल प्रबंधक फार्म-6 जमा कराएं या ना कराएं, यदि जमा कराएं तो स्कूल संचालक फार्म-6 में जो भी फीस बढ़ी हुई लिख दे सरकार की नजर में वह सही हो जाती है। उसकी कोई जांच-पड़ताल नहीं होती है। स्कूल प्रबंधक अपने ऑडिटर से मनचाही ऑडिट रिपोर्ट बनवाकर अगर उसे संलग्न भी कर दें तो उसकी भी कोई जांच-पड़ताल नहीं होती है। स्कूल वाले जो लिख दे या लिखवा दें सरकार की नजर में वही सही हो जाता है। पिछले 10 साल से ऐसा ही हो रहा है। स्कूल संचालक सरकार द्वारा दिए गए इस लाइसेंस रूपी फार्म-6 का जमकर फायदा उठा रहे हैं।
कैलाश शर्मा का कहना है कि मंच की ओर से जब स्कूलों की मनमानी व लूट-खसोट की शिकायत की जाती है तो शिक्षा निदेशक व फीस एंड फंड रेगुलेटरी कमेटी के चेयरमैन का जवाब होता है कि स्कूल प्रबंधक फार्म-6 में लिखी हुई फीस के अनुसार ही फीस वसूल रहे हैं, इसमें उनकी कोई गलती नहीं है।
मंच के प्रदेश अध्यक्ष एडवोकेट ओपी शर्मा ने कहा है कि वास्तव में होना यह चाहिए कि 31 दिसंबर तक जमा कराए गए फार्म-6 में दर्शाई गई चालू शिक्षा सत्र की फीस और आगे शिक्षा सत्र में ली जाने वाली प्रस्तावित फीस की व संलग्न की गई ऑडिट रिपोर्ट व बैलेंस शीट की सरकारी ऑडिटर से जांच करानी चाहिए। उनके खातों की जांच के बाद ही अगर स्कूल घाटे में चलता हुआ दिखाई देता है, तभी शिक्षा निदेशक को आगे फीस बढ़ाने की अनुमति देनी चाहिए।
बकौल ओपी शर्मा दिल्ली सरकार ने भी यही प्रक्रिया अपनाई थी तब जांच में पता चला था कि स्कूल प्रबंधक काफी मुनाफे में हैं और उनके पास काफी सरप्लस फंड है। उनकी आय-व्यय में काफी गड़बड़ी है। ऐसे में दिल्ली सरकार ने स्कूलों को फीस बढ़ाने की अनुमति नहीं दी उल्टे अभिभावकों से पिछले 5 साल में वसूली की बढ़ी फीस को ब्याज सहित अभिभावकों को वापिस दिलवाई।
एडवोकेट शर्मा का कहना था कि चाहे हरियाणा सरकार भी ऐसा कर सकती है। लेकिन ना तो सरकार की नीति सही है और ना नीयत सही। सरकार पूरी तरह से मनमानी कर रहे स्कूल संचालकों को संरक्षण प्रदान कर रही है।

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