मैट्रो प्लस से नवीन गुप्ता की रिपोर्ट
नई दिल्ली, 26 अक्तूबर: 8 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे बड़े फैसले नोटबंदी के एक साल पूरे हो जाएंगे। इस फैसले के 50 दिन तक पूरे देश में अफरातफरी का माहौल था। सबको वह मंजर याद है जब एटीएम और बैंकों के सामने रात 12 बजे से ही लंबी कतारें लग जाती थीं। शादी-विवाह के मौसम में लोगों को नकदी के चक्कर में क्या-क्या नहीं करना पड़ा था। विपक्ष एक ओर जहां इसको देश का सबसे खराब फैसला मान रहा था तो सरकार की ओर से इसे कालेधन के खिलाफ सबसे बड़ी कारवाई बता रही थी। हालांकि अभी तक यह साफ नहीं हो पाया कि इस फैसले के बाद से सरकार को कितना काला धन मिला है जबकि रिजर्व बैंक की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक देश की अर्थव्यवस्था में जितनी ज्ञात नकदी थी वह वापस आ गई है। तो सवाल इस बात का है कि फिर यह क्यों कहा जा रहा था कि कालाधन इससे वापस आ जाएगा।
हालांकि इन सब बहसों के बीच जब उत्तर प्रदेश का चुनाव हुआ तो आम जनता ने इस फैसले पर मुहर पर लगा दी। कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों को लग रहा था कि नोटबंदी के बाद आई दिक्कतों और इससे हुए नुकसान से कई लोगों की नौकरियां चली गई हैं इसका असर विधानसभा चुनाव में देखने को जरूर मिलेगा लेकिन यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला। दरअसल बीजेपी ने आम जनता के मन में यह धारणा पाने में कामयाबी पाई थी कि नोटबंदी से वही लोग परेशान हैं जिनके पास कालाधन है।
अब आने वाले 8 नवंबर को कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष एक बार से इस मुद्दे को उठाने वाला है। नोटबंदी की पहली बरसी पर पूरे देशव्यापी प्रदर्शन कर विपक्ष काला दिवस मनाने जा रहा है। वहीं बीजेपी ने भी ऐलान कर दिया है कि वह इस दिन काला धन विरोधी दिवस मनाएगी मतलब साफ है कि बीजेपी एक बार फिर से वही लकीर खींचने की कोशिश करेगी। अगर बीजेपी ऐसा कर पाई तो निश्चित तौर पर कांग्रेस को गुजरात में नुकसान उठाना पड़ सकता है क्योंकि इसी बहाने जीएसटी से उपजी दिक्कतों को काले धन नाम पर ढ़क दी जाएंगी।

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