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फरीदाबाद, 16 मई (नवीन गुप्ता): बाबा हरदेव सिंह जी का जन्म 23 फरवरी, 1954 में दिल्ली में बाबा गुरबचन सिंह जी और राजमाता कुलवन्त कौर जी के परिवार में हुआ। हरदेव जी को बचपन से ही अपने माता-पिता और अपने दादा दादी सद्गुरू बाबा अवतार सिंह जी एवं जगतमाता बुद्धवन्ती जी से सांसारिक तथा आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हुआ। बाबा हरदेव सिंह जी की प्रारम्भिक शिक्षा घर में ही प्राप्त हुई। अपनी तीव्र बुद्धि के फलस्वरूप उन्होंने हिन्दी व अंग्रजी के अक्षर एवं गिनती को बहुत ही जल्द सीख लिया। उसके बाद उन्हें रोसरी पब्लिक स्कूल, सन्त निरंकारी कालोनी, दिल्ली में भेजा गया, जहां उन्होंने अपने मधुर स्वभाव और बुद्धिमता से शिक्षकों और सहपाठियों का मन मोह लिया।
सन् 1963 में बाबा हरदेव सिंह जी को पटियाला के यादवेंद्र पब्लिक स्कूल, पटियाला में भेज दिया गया जहां से उन्होंने 1969 में माध्यमिक शिक्षा उत्तीर्ण की। उनके सहयोगी और करुणामय स्वभाव ने उन्हें शिक्षकों और सहपाठियों के बीच प्रसिद्ध कर दिया। वे खेल और पर्वतारोहण में रुचि रखते थे। पटियाला से स्कूल शिक्षा पूरी करने के पश्चात बाबा हरदेव सिंह जी दिल्ली वापिस आ गये और आगे की शिक्षा दिल्ली यूनिवर्साटी से आरम्भ की। वे मिशन की सामाजिक-आध्यात्मिक कार्यों में ग्रहण रूचि लेते थे। वे सत्संग और सेवा में नियमित रूप से भाग लेते थे। उनके विनम्र स्वभाव के कारण ही उन्हें Óभोला जीÓ कह कर भी पुकारा जाता था।
सन् 1971 में, बाबा हरदेव सिंह सन्त निरंकारी सेवादल के सदस्य बने और खाकी वर्दी में सेवा का आनन्द लेते थे। सन् 1975 में उन्होंने Óयूथ फोरमÓ का आयोजन किया जो सच्चे और सादे जीवन, भाव पूर्ण और प्रेमपूर्वक सेवा, व्यर्थ के खर्चों पर प्रतिबंध को प्रोत्साहन देने पर केन्द्रित थी।
सन् 1975 में दिल्ली में वार्षिक निरंकारी सन्त समागम के दौरान बाबा हरदेव सिंह का विवाह फरुर्खाबाद, उत्तर प्रदेश के गुरुमुख सिंह जी और श्रीमती मदान जी की सुपुत्री सविन्द्र से एक सादा समारोह में हुआ। 12 जनवरी, 1958 में पैदा हुई सविन्द्र, जिन्हें मिशन के श्रद्धालु भक्त प्यार व भक्ति से पूज्य माता जी कहते हैं शिक्षित और अपने कर्तव्य के प्रति जागरुक है।
आध्यात्मिक गुरु
बाबा हरदेव सिंह जी मिशन के आध्यात्मिक गुरु उन विपरीत परिस्थितियों में बने जब उनके आध्यात्मिक गुरु व एकता, अमन और शान्ति के मसीहा बाबा गुरुबचन सिंह जी को कुछ रुढि़वादी तत्वों ने 24 अप्रैल, 1980 को गोली से मार दिया था। उस समय युवा हरदेव ने न केवल अपना सत्गुरु खोया अपितु अपने पिता को भी गवां दिया। यह वो समय था जब मिशन के अनुयायियों के धैर्य, सहनशीलता और सब्र की महत्वपूर्ण परीक्षा थी। यह मिशन के भविष्य के लिए बहुत बड़ी चुनौती का समय था। किसी भी प्रकार की बदले की भावना को नकारते हुए बाबा हरदेव सिंह ने कहा कि Óऐसी कोई भी भावना बाबा गुरुबचन सिंह जी के जीवन तथा बलिदान के प्रति विपरीत होगी। उन्होंने मिशन के अनुयायियों को दया, सद्भाव, प्रेम और सत्य के संदेश को प्रसारित करने का आहन किया और प्रत्येक मानव के भले की कामना की। इसका परिणाम बहुत ही तात्कालित और अच्छा रहा।
बाबा जी मिशन के अनुयायीयों को रुढि़वादी तत्वों के अत्याधिक उकसाऊ व्यवहार के विपरीत, अहिंसा का मार्ग अपनाते हुए चलाते रहे। वर्ष 1981 से, यह दिवस मानव एकता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
विस्तार
मिशन को अत्यधिक विस्तार सभी दिशाओं में प्राप्त हुआ। आज मिशन के दिल्ली और ग्रेटर दिल्ली में 30 सैक्टर है जबकि देश भर में 68 जोन स्थापित किये गये हैं। मिशन की देशभर में 3000 तथा दूर देशों में 200 शाखाएं हैं। बाबा हरदेव सिंह मिशन के निरन्तर विस्तार के लिए संगठन-संबंधी आवश्यकताओं के प्रति अति जागरूक थे। उन्होंने दिल्ली में मार्च 1987 में एक कान्फ्रैन्स आयोजित की जो बाबा गुरुबचन सिंह जी द्वारा की गई मसूरी की दो कान्फ्रैन्स-1965 व 1973 पर आधारित थी। इन कान्फैन्स में, बाबा गुरुबचन सिंह जी के मानवता के लिए सेवा केलिए बलिदान और दूसरे श्रद्धालु भक्तों के मानव कल्याण कार्यों के लिए किए गये बलिदान को उजागर करने के लिए मानव एकता दिवस के अवसर पर स्थान-स्थान पर रक्तदान शिविर लगाये जाने का भी निर्णय लिया गया।
इसी तरह स्पेशल जनरल बॉडी मीटिंग 1995, 2002 और 2009 में भी आयोजित होती रही। प्रचारकों के लिए दिशा-निर्देश तथा मिशन के साथ जुड़े सन्तों के लिए किये गये निर्णयों को मिशन के अनुयायियों प्रकाशित होते रहे और प्रत्येक अनुयायी के साथ साझा किया गया। बाबा जी ने संदेह व मतभेद की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी। निरंकारी सरोवर कॉम्पलैक्स में साफ-सुथरे पानी का 5 एकड़ का सरोवर तथा अन्य 20 एकड़ का हरा-भरा मैदान फूलों और पौधों में सुसजित कॉम्पलैक्स बाबा हरदेव सिंह जी की दिल्ली पर्यावरण को एक अमुल्य देन है। आज इसी कॉम्पलैक्स में मिशन का एक गौरवपूर्ण Óनिरंकारी म्यूजि़अम-जरनी डिवाईनÓ भी है। 2005 में स्थापित, इसमें मिशन की विचारधारा को आधुनिक तकनीक द्वारा दर्शाया गया है।
एकत्व का फव्वारा, ध्वनि, रोशनी और पानी का एक मनोहर, ब्रह्मज्ञान की दिव्य रोशनी और प्रेम के मीठे रस को दर्शाती है, मिशन का एक अन्य एतिहासिक स्थल है जो बाबा हरदेव सिंह जी द्वारा उनके 59वें जन्म दिवस, 23 फरवरी, 2013 को, मानवता के प्रति समर्पित किया गया। मिशन का अपना एक स्टूडियो भी है। और आज मिशन,जनवरी 1997 से 37 ब्राँचों के साथ इंटरनेट से भी जुड़ा है। मिशन की पत्रिकाओं को आवश्यक गति प्रदान करने के लिए एक पृथक विभाग का गठन किया गया। जिसके Óसन्त निरंकारीÓ, Óएक नजऱÓ और Óहँसती दुनियाÓ की सदस्यता में भी विस्तार हुआ है। पब्लिकेशन विभाग पर भी विशेष ध्यान दिया गया है।
बाबा हरदेव सिंह जी दूर-देशों में रह रहे युवाओं को विशेष ध्यान रखते थे। वे उन्हें मिशन के विभिन्न कार्यों में भाग लेने के लिए प्रेरित करते थे। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि अगस्त 11-12, 2012 में यू.के. बर्मिंघम में आयोजित पहला निरंकारी इंटरनैशनल समागम, मुख्यत: युवाओं द्वारा नियोजित तथा आयोजित, किया गया।
मिशन
सन्त निरंकारी मिशन एक आध्यात्मिक विचारधारा है जो विश्व भर में फैली है। मिशन आध्यात्मिक रोशनी द्वारा अपने अनुयायीयों के जीवन को निखारने का प्रयास कर रहा है। ये परमपिता-प्रभु का ज्ञान करा कर विश्व भाईचारे की भावना को मज़बूत करने का प्रयास कर रहा है। नि:संदेह, जो सत्य यहाँ बताया जा रहा है वो शाशवत् है, मिशन का आरम्भ एक आध्यात्मिक विचारधारा के रूप में पेशावर, में 25 मई, 1929 को हुआ। मिशन के संस्थापक बाबा बूटा सिंह जी ने ब्रह्मज्ञान भाई साहब काहन सिंह जी से प्राप्त किया, परन्तु बाद में उन्हें मिशन का हिस्सा नहीं माना गया क्योंकि मिशन को उन्होंने आरम्भ नहीं किया। मिशन का प्राथमिक उद्ेश्य प्रभु-परमात्मा के ज्ञान को उन तक पहचाना था जो अज्ञानता के अंधकार में जी रहे थे और विभिन्न कर्म-कांडों और रीति-रिवाज़ों को अपना रहे थे और सभी तरह के झूठे भ्रम-भ्रांतियों से पीडि़त थे।
सन् 1943 में बाबा बूटा सिंह जी ने अंतिम श्वांस लिये। उन्होंने बाबा अवतार सिंह जी को गुरुगदी सौंपी। इसी तरह 3 दिसम्बर, 1962 को बाबा अवतार सिंह जी एक सामान्य गुरसिख के रूप में आ गये और गुरुगदी पर बाबा गुरुबचन सिंह जी को बिठा दिया। उसके बाद 24 अप्रैल, 1980 को बाबा गुरुबचन सिंह जी के बलिदान के बाद सद्गुरु बाबा हरदेव सिंह जी नेे उनकी जि़म्मेदारियों को आगे बढ़ाया।

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