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फरीदाबाद, 22 जुलाई (नवीन गुप्ता): पूर्व मंत्री चौ. महेन्द्र प्रताप सिंह का कहना है कि उनके पुत्रों पर जो मामला दर्ज कराया गया है वह पूरी तरह राजनीति से प्रेरित है और केन्द्रीय राज्यमंत्री कृष्णपाल गुर्जर के दबाव में किया गया है। मेरे दोनों पुत्रों का इस पूरे मामले से कोई लेना-देना नहीं है। न तो जमीन हमारी है और न ही हम खरीदार हैं। महेन्द्र प्रताप आज यहां होटल मैगपाई में आयोजित प्रैसवार्ता को सम्बोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि केन्द्रीय राज्यमंत्री गुर्जर सत्ता का दुरुपयोग कर कानून का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। शहर में विकास कार्य न करवा पाने और लोगों के बढ़ते आक्रोश की खीझ वो इस तरह से उतार रहे हैं। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि खट्टर जी को इस बारे में पता न हो। उन्हें जानकारी लेकर इस मामले में विचार करना चाहिए क्योंकि वो प्रदेश के मुखिया हैं। प्रैसवार्ता में उनके साथ पूर्व महापौर सुबेदार सुमन व पूर्व उप-महापौर बसंत विरमानी, तरूण तेवतिया, राजेश भड़ाना, जितेन्द्र भड़ाना आदि मौजूद थे।
उन्होंने मामले की विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि जिस मामले को लेकर यह मुकद्दमा दर्ज कराया गया है, 2013 में इस डील का एमओयू लिखा गयाा। जमीन असलीयत में बैंक को मॉरगेज थी और उस पर बैंक का 6.5 करोड़ रूपया बकाया था। एमओयू के अनूसार संदीप, धर्मेन्द्र आदि को ये रूपये बैंक में जमा करने थे और उसके बाद त्यागी पाईप क्राफ्ट प्रा. लि. ने जमीन को 26 करोड़ कुछ रुपए में बेचने के लिए उनके साथ एग्रीमेंट करेंगे। संदीप, धर्मेन्द्र आदि 5.5 करोड़ रुपए जमा करा पाए। त्यागी पाईप क्राफ्ट प्रा. लि. ने इनको कई बार मौका देने के बाद नोटिस देकर एमओयू 2014 में रद्द कर दिया। संदीप ने इसके बावजूद जमीन पर कब्जा किया और त्यागी पाईप क्राफ्ट प्रा. लि. की प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाया।
त्यागी ने जुलाई, 2014 में सूरजकुंड थाने में शिकायत की। शिकायत की कॉपी केन्द्र सरकार में गृहमंत्री को भी भेजी। डीसीपी एनआईटी ने नवंबर 2014 में इस सारे मामले को पैसे का लेन-देन बताते हुए दीवानी मामला घोषित कर केस बंद कर दिया। 29 अक्तूबर, 2014 को त्यागी ने अपनी जमीन का एग्रीमेंट धर्मेन्द्र और बिजेन्द्र के साथ 32 करोड़ रुपए में कर दिया। 8 मई, 2015 को इस एग्रीमेंट के बाद संदीप ने एक सिविल सूट फाईल किया। त्यागी कंपनी और सरकार को डिफेंडेंट बनाया और धर्मेन्द्र और हरिंदर को परफोर्मा डिफेंडेंट बनाया। संदीप, धर्मेन्द्र और हरिन्दर ने मिलकर त्यागी को 10 करोड़ रुपए दिए। इस सिविल केस में किसी फॉड या चीटिंग का जिक्र नहीं है। इस केस में संदीप ने कोर्ट में बयान दिया कि हमारा आपसी समझौता हो गया है और वह इस केस को आगे नहीं चलाना चाहता और केस वापिस ले लिया। इस केस में संदीप ने विवेक और विजय को पक्ष नहीं बनाया था और कहीं भी यह जिक्र नहीं किया कि उसने पैसे इनके कहने से दिए या इनको दिए। अब 2016 में संदीप ने एक जालसाजी व जमीन हडपने का झूठा केस 7 लोगों के खिलाफ दर्ज कराया है। इसमें संदीप कहता है कि उसने अकेले ने 9.5 करोड़ रुपए त्यागी पाईप को विवेक और विजय के कहने से दिए हैं। जिसमें 8.5 करोड़ रुपए नगद और एक करोड़ चैक से 15 जनवरी, 2014 तक दिए हैं। जबकि कोर्ट में मर्ई, 2015 में संदीप ने कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं किया है कि पैसे उसने विवेक या विजय के कहने से दिए हैं। जिनका एमओयू से कोई नाता न हो, सिविल केस में नाम न हो, फिर अचानक उन पर जालसाजी का आरोप क्यों ? इसका क्या कारण हो सकता है? त्यागी, संदीप और दूसरों के कहने पर विवेक व विजय ने एक-दो बार इनके फैसले कराए हैं। फैसले में त्यागी ने यहां तक भी मान लिया कि संदीप वगैरह पूरी कीमत दे दें तो एमओयू रदद् होने के बावजूद भी जमीन दे देगा या वे 5.5 करोड़ रुपए जो उसके पास आए हैं, वापिस ले लें। उन्होंने ये तक कहा कि जितने पैसे आएं हैं, उतने की जमीन ले लें। इसमें विवेक या विजय ने क्या जुर्म किया है? इसके बावजूद भी ये लोग बकाया रकम नहीं दे पाए या नहीं देनी चाही। परंतु यहां तो जिस केस को डीसीपी ने 2014 में सिविल करार दिया, उसी केस को अब पुलिस जालसाजी का केस मान रही है, इसको आप क्या कहेंगे ? इस मनघड़ंत और बेबुनियादी कहानी के और भी सबूत हैैं। त्यागी को अब तक 5.5 करोड़ रुपए का भुगतान हुआ है। सब बैंक ट्रांजक्शन के द्वारा हुआ है। संदीप ने अपने सिविल केस में लिखा है कि पेमेंट संदीप, धर्मेन्द्र व हरिन्दर तीनों की मार्फत हुई थी। लेकिन अपनी पुलिस में की शिकायत में उसने कहा है कि 9.5 करोड़ की पेमेंट उसने अकेले की है, वो भी 8.5 करोड़ कैश में। संदीप ने धर्मेन्दर को धर्मेन्द्र और त्यागी के बीच एग्रीमेंट के बाद 29 दिसम्बर, 2014 में 31 लाख तथा 6 जनवरी, 2015 को 10 लाख रुपए पेमेंट आरटीजीएस से की है, तो तब तक तो धर्मेन्द्र ने कोई जालसाजी नहीं की तो अब ये केस क्यों? इन सबका कारण है राजनीतिक दुर्भावना और सत्ता का दुरुपयोग। सत्ता पक्ष के नेता सरकारी मशीनरी का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। सत्ता में बैठकर ये लोग विकास का कोई कार्य नहीं कर पा रहे हैं, इसलिए सत्ता के सहारे अपने निजी व राजनैतिक लाभ उठाने के लिए हमें बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। पहले ये लोग कांग्रेस में थे और सरकार बदलते ही जमीनों पर कब्जे की मंशा से बीजेपी में चले गए। मैंने इनको पहले भी समझाया था, क्योंकि इन्होंने मेवला महाराजपुर पहाड़ पर ब्रिगेडियर चंदन सिंह की जमीन कब्जा ली थी, जो बाद में मुझे पता चला कि पीएमाओ के हस्तक्षेप के बाद खाली हुई। ये लोग तभी से ही पार्टी छोडऩे की तैयारी करने लगे। मुझे ऐसा लगता है कि संदीप को भ्रमित करके राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा है।

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