मैट्रो प्लस से मोहित गुप्ता की रिपोर्ट
नई दिल्ली, 15 दिसम्बर: 19 साल पहले अप्रैल 1998 में जब सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाली, तब भी पार्टी की सियासी हालत कमजोर थी। मई 1991 में राजीव गांधी की हत्या होने के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया से पूछे बिना उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा कर दी, परंतु सोनिया ने इसे स्वीकार नहीं किया और कभी भी राजनीति में नहीं आने की कसम खाई थी। सोनिया गांधी ने राजीव गांधी फाउंडेशन की स्थापना के साथ खुद को राजनीति से दूर रखने की कोशिश की।
इसके बाद 1996 में नरसिम्हा राव की सरकार जाने के बाद पार्टी की चिंता और बढ़ गई। इस चुनाव में बीजेपी और जनता दल ने भारी बढ़त हासिल की और बीजेपी ने गठबंधन सरकार बनाई।
कांग्रेस की हालत दिन ब दिन बुरी होती देख सोनिया गांधी ने कांग्रेस नेताओं के दबाव में 1997 में कोलकाता के प्लेनरी सेशन में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की। जिसके बाद अप्रैल 1998 में वो कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं। इस तरह नेहरू-गांधी परिवार की पांचवीं पीढ़ी के रूप में सोनिया गांधी ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली।
अब जबकि राहुल गांधी को पार्टी की कमान सौंपी गई है। तब भी कांग्रेस की हालत खस्ता है। 2004 और 2009 में सरकार बनाने के बावजूद 2014 में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई।
इसके बाद महाराष्ट्र, हरियाणा, यूपी, उत्तराखंड, गोवा, असम समेत कई सूबों में बीजेपी ने अपने दम पर सरकार बनाई। जबकि दूसरी तरफ कांग्रेस एक के बाद चुनाव हारती गई। यहां तक कि निकाय चुनावों में भी कांग्रेस अपनी साख नहीं बचा पा रही है।

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