मैट्रो प्लस से नवीन गुप्ता गुप्ता की स्पेशल रिपोर्ट।
फरीदाबाद, 6 जनवरी:

यूं ही नहीं मिलती राही को मंजिल,
एक जूनुन सा दिल में जगाना होता है।
पूछा चिडिय़ा से कैसे बना आशियाना तेरा,
बोली भरनी पड़ती है बार-बार उड़ान।
तिनका-तिनका उठाना होता है।।

यह पंक्तियां हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल के व्यक्तित्व पर बिल्कुल सटीक बैठती है जबकि मनोहर लाल के मुख्यमंत्री बनने से लेकर आज तक प्रदेश में यह चर्चा बनी रहती थी कि वे पैराशूट से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे है।

आज हम इस रहस्य से पर्दा उठाते हुए बताने जा रहे हैं कि मनोहर लाल बेहद साधारण परिवार से संबंध रखते हैं। उन्हें सत्ता ना तो विरासत में मिली और ना ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर वे पैराशूट से पहुंचे हैं। वे काफी मशक्कत और नेक नीयत के कारण इस मुकाम तक पहुंचे हैं।

मनोहर लाल भी तिनका-तिनका जोडक़र हरियाणा को एक विकसित प्रदेश बनाने में जुटे हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद मनोहर लाल प्रदेश की जनता के हित में जो काम कर रहे हैं, वह तो हम समय-समय पर आपको बताते ही रहते हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं मनोहर लाल के संघर्ष भरे जीवन की वो रोचक और सच्ची कहानी जिसे सुनकर आप भी हैरान हुए बिना नहीं रहेंगे।

वैसे तो मनोहर लाल के जन्म से पहले ही उनके परिवार के लिए संघर्ष का दौर शुरू हो गया था। सन् 1947 में देश के बंटवारे के बाद पश्चिमी पंजाब के झंग जिले से रोहतक के गांव निंदाना में आकर उनका परिवार बसा था। उस समय पाकिस्तान से आए खट्टर परिवार के पास न तो कोई जमा पूंजी थी और ही रोजगार का कोई साधन। पिता हरबंस लाल और दादा भगवान दास गांव में मजदूरी कर परिवार का गुजारा चलाते थे। इस दौरान उन्होंने कुछ पैसे जोडक़र निंदाना गांव में किरयाने की दुकान भी खोल ली।

इसी निंदाना गांव में पांच मई, 1954 को मनोहर लाल का जन्म हुआ। उनके परिवार को मदीना गांव में जमीन मिली थी, जिसे बेचकर रोहतक के ही बनयानी गांव में परिजनों ने जमीन खरीदी। इसलिए उनका परिवार वर्ष-1958 में रोहतक शहर से आठ किलोमीटर दूर बनयानी गांव में आकर बस गया।

उनके पिता खेतीबाड़ी कर परिवार का गुजारा चलाने लगे। छह साल की उम्र में मनोहर लाल का स्कूल में दाखिला कराया गया। चूंकि सात भाई-बहनों में मनोहर लाल सबसे बड़े थे, इसलिए उनके ऊपर परिवार की ज्यादा जिम्मेवारी थी। होश सम्भालते ही वे खेती के काम में पिता का सहयोग करने लगे।

मनोहर लाल खेतों का काम भी काफी मेहनत से करते थे। रोज तडक़े यानी सुबह-सुबह चार बजे सोकर उठने के बाद खेतों में उगने वाली सब्जियों को तोडक़र अपनी साइकिल की मदद से मंडी तक पहुंचाते थे।

परिवार के पहले 10वीं पास सदस्य बनने के बाद उन्होंने डॉक्टर बनने का फैसला लिया था, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए पिता हरबंस लाल चाहते थे कि मनोहर लाल पढ़ाई छोड़ कर खेतीबाड़ी पर ध्यान दें। क्योंकि उन्हें पढ़ाई का काफी चाव था, इसलिए मां शांति देवी से पैसे लेकर उन्होंने रोहतक के पंडित नेकीराम शर्मा गवर्नमेंट कॉलेज में दाखिला लिया और मेडिकल की पढ़ाई शुरू कर दी। जिसके बाद मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने के लिए मनोहर लाल अपने रिश्तेदारों के पास दिल्ली आ गए।

दिल्ली में उन्होंने अपने गुजारे और पढ़ाई के खर्च के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ानी शुरू की। इस दौरान उन्होंने परिवार से रुपये उधार लेकर सदर बाजार में कपड़े बेचने का काम भी शुरू कर दिया। साथ ही दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई भी करने लगे। दुकान से मुनाफा कमाकर मनोहर लाल ने न केवल परिवार से उधार लिये पैसे लौटा दिये बल्कि छोटी बहन की शादी भी कर दी।
25-26 वर्ष की उम्र होने पर परिवार के लोग मनोहर लाल पर शादी करने का दबाव बनाने लगे, लेकिन उन्होंने देश की सेवा करने की बात कहते हुए शादी करने से साफ इनकार कर दिया।

वर्ष 1977 में स्वयंसेवक के रूप में मनोहर लाल आरएसएस के साथ जुड़ गए। वर्ष 1979 में मनोहर लाल इलाहाबाद में हुए विश्व हिंदू परिषद के समागम में पहुंचे, जहां वे अनेक संतों और संघ के प्रचारकों से मिले। वर्ष 1980 में उन्होंने आजीवन आरएसएससे जुडऩे और शादी न करने का फैसला अपने परिवार को सुनाया। उनके इस फैसले का परिवार वालों ने काफी विरोध भी किया, लेकिन उन्होंने अपना फैसला नहीं बदला। आरएसएस के प्रचारक के रूप में उन्होंने लगातार हरियाणा के अलग-अलग हिस्सों में जाकर खूब मेहनत के साथ काम किया। इस दौरान देश के किसी भी हिस्से में आपदा होने पर मनोहर लाल अपनी टीम के साथ तुरंत मदद के लिए मौके पर पहुंच जाते थे। उनकी मेहनत को देखते हुए आरएसएस की तरफ से उन्हें सक्रिय राजनीति में आने का मौका दिया गया।

14 वर्षो तक आरएसएस के लिए काम करने के बाद वर्ष-1994 में मनोहर लाल बीजेपी में शामिल हो गए, जहां उन्हें हरियाणा बीजेपी में संगठन मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई। उन्होंने बीजेपी के लिए राजनेतिक सूझबूझ का खूब कौशल दिखाया। इस दौैरान उन्होंने देश के अलग-अलग जगह प्रदेशों गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तरप्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की मजबूती के लिए जमकर काम किया।

वर्ष 1996 में बीजेपी ने बंसीलाल के नेतृत्व वाली हरियाणा विकास पार्टी को प्रदेश में सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया। बाद में मनोहर लाल ने देखा कि गठबंधन बीजेपी के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है और सरकार अलोकप्रिय हो रही है। ऐसे में मनोहर लाल की सलाह पर हाईकमान ने बंसीलाल से समर्थन वापिस ले लिया।

इसके बाद बीजेपी ने ओमप्रकाश चौटाला को बाहर से समर्थन दिया। इनेलो के साथ हुए इस गठबंधन ने 1999 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा की सभी 10 सीटें जीत ली।

वर्ष 2002 में उन्होंने जम्मू-कश्मीर में बीजेपी की मजबूती के लिए भी काफी काम किया। बीजेपी के संगठन मंत्री के रूप में मनोहर लाल की छवि एक योग्य और सख्त प्रशासक के साथ-साथ एक ऐसे रणनीतिकार की बनी जो हरियाणा की सियासत की एक-एक रग को पहचानता है।

मनोहर लाल की इन्हीं खासियतों को देखते हुए गुजरात के कच्छ जिले में चुनाव प्रबंधन के लिए नरेंद्र मोदी ने मनोहर लाल को बुला लिया था। उस समय गुजरात मे बीजेपी को छह में से तीन सीटें मिली थी। इसी के चलते वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मनोहर लाल को नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के 50 वार्डो का प्रभारी बनाया था।

ऐसी तमाम उपलब्धियों को देखते हुए ही मनोहर लाल को हरियाणा प्रदेश की बागडोर सौंपी गई थी। प्रदेश की बागडोर संभालने के बाद उन्होंने जनता को जरा भी निराश नहीं किया। पिछले नौ सालों से मनोहर लाल सरकार न केवल भ्रष्टाचार पर लगातार चोट पहुंचा रही है, बल्कि अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक उसका हक पहुंचाने का काम भी कर रही है।

मनोहर लाल के जीवनकाल को लेकर पेश की गई मैट्रो प्लस की ये स्टोरी आपको कैसी लगी, इसके लिए कमेंट्स बॉक्स में कमेंट करके जरूर बताएं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *