मैट्रो प्लस की रिपोर्ट
मेवात, 15 अप्रैल: पिछले कई सालों में महिलाओं के प्रति क्रूर अत्याचार बढे हैं खासतौर से बलात्कार। महिलाओं में 3 साल की बच्ची से लेकर 70 साल की बुजुर्ग महिलायें शामिल हैं। इन कई सालों में हमारी बच्चियों, बेटियों की असुरक्षा बढ़ी है। आखिर कब तक हमारी महिलायें असुरक्षित माहौल में जिंदगी बसर करेंगी ?
ये सवाल ऐसा है शायद जिसका जवाब देश की सरकार के पास नहीं है। ये सवाल तब और डरावना हो जाता है जब सत्ता पक्ष के नेता व चुने हुए जन-प्रतिनिधि, पुलिस या सरकारी तंत्र के लोग बलात्कार की घटनाओं में प्रमुखता से लिप्त पाए जाते हैं। सत्ता पक्ष के नेता आपराधिक मामलों के साथ-साथ बलात्कार जैसी घिनौनी व जघन घटनाओं को अंजाम दे रहें हैं जो बेहद ही शर्मनाक व गंभीर स्थिति है।
जो राजनीतिक पार्टी  “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” का नारा लगा लगाकर सत्ता में आई थी,  आज उसी पार्टी के विधायक व नेताओं पर मासूम बच्ची से लेकर महिलाओं तक के साथ दुष्कर्म तथा हत्या का गंभीर आरोप लग रहे हैं। हद तब हो जाती है जब भाजपा सरकार मामले में लीपापोती करके कोई करवाई तक नहीं करती और न्यायपालिका को मामले में दखल देकर भाजपा विधायक को गिरफ्तार करने के आदेश देने पड़ते हैं। भाजपा के कई नेता तो बच्चियों के बलात्कार तक को पाकिस्तान से जोड़ देते हैं। जब सरकार जिम्मेदारी तक नहीं ले रही तो इंसाफ की बात तो सोचना भी बेमानी होगा।

भाजपा राज में क्यों अपराधी नेताओं को बचाया जा रहा है ? शायद राजनैतिक फायदे को न्याय से उपर रखकर देखा जा रहा है। खैर इस मामले में समाज का नजरिया भी ज्यादा अच्छा नज़र नहीं आता है, क्यूंकि जिम्मेदारी को सरकार पर डालने भर से ही समाज इससे बरी नहीं हो सकता है। लगभग छह साल पहले की बात करते हैं जब दिल्ली के मुनिरका में 16 दिसंबर, 2012 की एक सर्द रात को 23 वर्षीय महिला से गैंग रेप किया गया। मामला राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में छाया रहा। पीड़िता को उपचार के लिए सिंगापुर भेजा गया लेकिन जिंदगी की जंग में वो “निर्भया” हार गई। देश के हर नागरिक के दिल में जज्बात भर गए। आखिर भरे भी क्यों न, एक पिता और राजनीतिज्ञ होने के नाते मेरे दिल में भी अपार दर्द और पीड़ा थी। देशभर में न्याय के लिए मोमबत्तियां लिए लोग खड़े थे। फ़ास्ट कोर्ट बना, मामले में एक नाबालिग को छोड़कर सभी को फांसी दी गयी, निर्भया के लिए जरूर कुछ शान्ति मिली होगी। लेकिन छह साल में बदला क्या है ? पहले तिरंगा लेकर लोग न्याय के लिए खड़े रहते थे और आज तिरंगे लेकर आरोपियों का बचाव किया जाता है ? शायद अब अपराधियों को धर्म से जोड़कर देखने का प्रयास कुछ तत्वों द्वारा किया जा रहा है। देश किस और जा रहा है? शायद सामाजिक अंधकार की और ?
राजस्थान के राजसमंद में संभुनाथ रेगर, एक तरफ़ा प्यार में पागल होकर एक इफ़राजुल नाम के शख्स की हत्या करता है या यूँ कहूं की की उसे जिन्दा जला देता है और पुरे वाक्ये को फिल्म बना कर सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर वायरल करता है। पुलिस आरोपी को पकड़ती है और अदालत में पेश करती है, लेकिन ये क्या की कुछ फ़र्ज़ी स्वंभू “राष्ट्रवादी” अदालत को घेर लेते हैं और राष्ट्रीय ध्वज उतारकर भगवा झंडा फहराकर आरोपी का महिमामंडन करके उसे छुड़ाने का प्रयास करते हैं, फिर भी भाजपा की राजस्थान सरकार मामले पर कुछ खास नहीं करती है। सवाल उठता है की आरोपियों को धर्म से जोड़कर, न्याय प्रकिर्या को बाधित किया जा रहा है। शायद इसलिए भी अपराध करने की प्रवर्ति बल ले रही है।
उन्नाव, उत्तर प्रदेश यानि योगी राज का प्रदेश, वहां एक 18 वर्षीय लड़की से भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर बलात्कार, अपहरण और युवती के पिता की हत्या में शामिल होने के गंभीर आरोप लगते हैं। कई महीने बीतने पर एफआईआर तक दर्ज़ नहीं होती। मामला फिर वायरल होता है, सरकार फिर आरोपी के सामने खड़ी नज़र आती है। अदालत आगे आती है, मामला दर्ज़ होता है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ वाले खुद बेटिओं की अस्मित्ता को रोंधते हुए नज़र आते हैं। जब सरकार के नुमाइंदे ही बलात्कार कर रहे हों तो फिर असामाजिक तत्वों के होंसले क्यों न बुलंद हो।
फिर मामला देश का सर माने जाने वाले जम्मू कश्मीर से आता है, जहाँ एक पवित्र मंदिर में कुछ अपवित्र और घिनोने आठ लोग एक आठ साल की मासूम बच्ची के साथ आठ दिन तक नशा देकर गैंग रेप करते हैं और मार डालते हैं। बच्ची और आरोपियों के धर्म अलग-अलग होते हैं। समाज से कुछ विकृत मानसिकता के लोग अभियुक्तों के पक्ष में रैली निकालते हैं जिसको भाजपा पीडीपी सरकार के दो मंत्री न केवल समर्थन देते हैं बल्कि रैली में भाग लेते हैं और खुलकर आरोपियों के पक्ष में बयानबाज़ी करते हैं। इस घटना में चार पुलिसकर्मी भी शामिल रहते हैं। तो सोचिये हमारी बच्चियों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी न भाजपा सरकार उठा रही है और न ही पुलिस। भाजपा सरकार में कई महिला मंत्री है, अभी तक उनके बयान तक नहीं आये। महिला आयोग व कई सारे मानव आयोग कहाँ हैं ? ये महिला मंत्री जब विपक्ष में थी तो प्रधानमंत्री को चूड़ियां भेजती थी, आज आशीष भेजती है। क्या बलात्कार मौके की राजनीति करने के लिए हैं ? क्या समाज की संवेदनाएं मर गई हैं ? शायद अन्ना, रामदेव, किरण बेदी, केजरीवाल जैसे लोग जो निर्भया काण्ड के दौरान इंडिया गेट पर मोमबत्ती प्रजव्लित करते थे आज शायद उनके लिए भी बलात्कार के मायने बदल गए हों ? राहुल गाँधी ही एकमात्र ऐसे शख्स नज़र आये हैं जो निर्भया से लेकर उन्नाव- कटुवा सभी का दर्द एक सामान समझते हैं या सभी को एक चश्मे से देखते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं की निर्भया के परिवार को राहुल गाँधी ने मीडिया की नज़र से ओझल होकर पूरी मदद की थी।
महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा और क्रूरतापूर्ण रवैया गहन चिंता ही नहीं, बल्कि गहराई से चिंतन का विषय है आखिरकार क्यूँ दिन–प्रतिदिन रेप और मर्डर जैसी घटनाएँ बढती जा रही हैं ? हम इसके खिलाफ कड़े-से-कड़ा कानून लाने की हिमायत कर रहे हैं। इसके दोषियों को फाँसी की सजा के प्रावधान के लिये कैंपेन कर रहे हैं। पर सवाल यही खड़ा होता है कि क्या सचमुच ये कानून इस समस्या के संपूर्ण या आंशिक निदान में भी सहायक होगा ? क्यूंकि अब तो मामलों में कानून बनाने वाले और उसकी रक्षा करने वाले भी शामिल हैं।
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक 2016 में देशभर में बलात्कार के लगभग 35,000 मामले दर्ज हुए,  2015 में यह संख्या 25 हजार थी। एक साल में लगभग दस हजार की बढ़ोतरी। बलात्कार की शिकार होने वाली घटनाओं में तीन साल की बच्ची से लेकर 70 साल तक की बुजुर्ग महिलाएं शामिल हैं।
सरकार का लचर रवैया, समाज की असंवेदनशीलता, आपसी अविश्वास, गंदे लोगों की सत्ता में बढ़ती भागीदारी इन हालातों के बड़े कारण हैं।
पिछ्ले चार वर्षों में महिलाओं, यहां तक कि मासूम बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाएँ तेज़ी से बढ़ी हैं। रेप की ऐसी घटनाएँ अखबारों के पन्नों पर आपको एक खबर के रूप में अक्सर देखने को मिल जाएँगी जिन पर मीडिया में बहस भी नहीं होती, न ही समाचार चैनलों पर इसके कारणों पर चर्चा की जाती है।
आज पुलिस पर भी सवाल उठ रहे हैं कि वह बलात्कार जैसी घटनाओं की रिपोर्ट दर्ज नहीं करती, ले-देकर रफा-दफा कर देने की कोशिश करती है, दर्शाता  है कि महिला हिंसा से जुड़ी घटनाओं को ये तरजीह नहीं देते हैं। पुलिस समाज की मुख्यधारा का एक हिस्सा है, उसके बीच ही अगर ऐसी सोच है तो आम सोच का हम सहज ही अनुमान लगा सकते हैं। अतः इन सबकी रोकथाम के लिये सबसे पहले हमें अपने सामाजिक ढांचे को दुरुस्त करना होगा।
आज हमारे समाज में अपराध को रोकने के बजाय उसे अपने स्मार्टफोन से इसके चित्र खींचने की प्रथा बढ़ रही है।
निर्भया दुष्कर्म ने एक समय समाज की संवेदनाओं को बुरी तरह झकझोरा था, पर लगता है इन दिनों यह संवेदनाएं अब इतनी कम हो गई हैं कि लगभग इतने ही गंभीर दुष्कर्मों पर अब बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है। आज घटना घटती है, कल उसे हाशिए पर धकेल दिया जाता है। यह हमारे समाज के लिए बहुत चिंता का विषय है कि समाज इतना संवेदनाविहीन हो गया है। वह ऐसी क्रूर वारदातों के कारणों का सही पता लगाकर उन्हें कम करने का निष्ठावान, गंभीर प्रयास तक नहीं कर रहा है।
दिन प्रतिदिन बढ़ते  असहनीय हद तक क्रूर यौन हिंसा की घटनाओं के बाद भी समाज क्यों सो रहा है ? क्या पांच वर्षों में केवल एक बार किसी विशेष परिस्थितियों में समाज की नींद खुलती है? क्या इंसान पशु से भी नीचे गिर चुका है?
सरकार की चुप्पी व रवैया, समाज की खामोशी बता रही है की न सरकार परेशान है और न समाज गंभीर है। बस जिस घर की बेटी की अस्मित्ता लुटती है वही दर्द की पीड़ा झेलता है।
समाज को गंदे राजनेतओं को ठुकराना होगा, नशा- शराब से दुश्मनी करनी होगी, पोर्नोग्राफी प्रसार रोकना होगा, अपराध को धर्म के चश्मे से देखना बंद करना होगा, सरकार से हिसाब लेना होगा, सडकों पर उतरकर मोमबत्ती की जगह तब तक खुद जलना होगा तब तक समाज से इस अंधियारे का खात्मा न हो जाये।
अगर अभी भी हमारे समाज व सरकार ने अपनी नाकामियों को नहीं स्वीकार किया और सही प्रभावी तरह से  काम नहीं किया तो कल और डरावना और खौफनाक होगा।

लेखक हरियाणा कांग्रेस के उपाध्यक्ष व पूर्व मंत्री आफ़ताब अहमद हैं।

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