मैट्रो प्लस से नवीन गुप्ता की स्पेशल रिपोर्ट
फरीदाबाद, 19 सितम्बर:
शहर के बीचों-बीच स्थित सबसे ज्यादा विवादास्पद हार्डवेयर मामले का जिन्न एक बार फिर बाहर निकल आया है। पर इस बार यह जिन्न दोबारा से शायद ही अंदर वापिस जा पाए। कारण,हार्डवेयर मामले में इस बार विजिलेंस विभाग ने अपनी विस्तृत जांच पूरी करते हुए नामजद FIR तक दर्ज कर ली है। जिससे पूरे नगर निगम व प्रशासनिक हलकों में हड़कम्प सा मचा हुआ है।
ध्यान रहे कि इस हार्डवेयर मामले में नगर निगम फरीदाबाद के प्लानिंग व इंजिनियरिंग विभाग के कई बड़े अधिकारियों की कार्यप्रणाली शुरू से ही संदेहास्पद रही है। और अब इन आरोपों पर मोहर लगा दी है विजिलेंस विभाग की जांच रिपोर्ट के बाद दर्ज हुई FIR ने। विजिलेंस ने हार्डवेयर की रिहायशी कालोनी की करीब एक एकड़ से अधिक की जमीन की एलॉटमेंट, रजिस्ट्री, नक्शे व सब-डिवीजन करने को लेकर स्टेट विजिलेंस ब्यूरो ने अपनी जांच में प्रशासन व MCF की प्लानिंग व इंजिनियरिंग विभाग के कई वरिष्ठ अधिकारियों, तहसीलदारों सहित अपने आपको हार्डवेयर की प्रोपर्टी में मालिक बताने वाले कई लोगों को दोषी मानते हुए उन्हें नामजद कर हुए उनके खिलाफ स्टेट विजिलेंस ब्यूरो के फरीदाबाद स्थित थाने में IPC की धारा 120B, 420, 467, 468, 471 तथा प्रीवेंशन ऑफ क्रप्शन एक्ट,1988 (13)1 के तहत FIR दर्ज की है। वैसे शहर के एक प्रमुख समाजसेवी आनंदकांत भाटिया भी इस हार्डवेयर मामले के घोटाले को उठाने में काफी समय से लगे हुए हैं और उन्होंने नगर निगम अधिकारियों को हाईकोर्ट की अवमानना करने के आरोप में नगर निगम फरीदाबाद को नोटिस भी दिया हुआ है।
काबिलेगौर रहे कि हार्डवेयर की रिहायशी कालोनी से जुड़ा यह विवादास्पद मामला सन् 2014 का है। हार्डवेयर चौक स्थित इंडियन हार्डवेयर रिहायशी कालोनी एनआईटी फरीदाबाद की यह जमीन उक्त कंपनी के नाम पर थी। इंडियन हार्डवेयर कंपनी के निदेशक अजय गुप्ता ने यह जमीन 21 जनवरी, 2014 को रजिस्ट्री/वसीका नंबर 14737 के तहत श्रीमति सुमन वर्मा पत्नी पुष्पेन्द्र वर्मा निवासी सैक्टर-28, फरीदाबाद सहित नौ लोगों को उसी दिन बेच दी थी जिस दिन कंपनी के नाम ये जमीन हुई थी। विजिलेंस जांच में इस जमीन की एलॉटमेंट से लेकर रजिस्ट्री, नक्शे व सब-डिवीजन करने में बड़ा फर्जीवाड़ा पाया गया। इसको लेकर विजिलेंस ब्यूरो ने तत्कालीन तहसीलदार बिजेंद्र राणा, तत्कालीन तहसीलदार राजेंद्र गर्ग, तत्कालीन नायब तहसीलदार वेद सिंह, नगर निगम के तत्कालीन चीफ टाऊन प्लानर सतीश पाराशर, तत्कालीन डीटीपी आर.पी.सिंगला, तत्कालीन प्लानिंग अस्टिेंट जितेंद्र सिंह, इंडियन हार्डवेयर रिहायशी कालोनी हार्डवेयर चौक फरीदाबाद के डॉयरेक्टर अजय गुप्ता सुपुत्र श्रवण कुमार गुप्ता, बसंत विहार, नई दिल्ली आदि को दोषी माना है और नामजद FIR दर्ज की है। इनके अलावा MCF के कई ओर अधिकारियों के नाम अभी सामने आने बाकी हैं जोकि किसी ना किसी रूप में इस मामले में शामिल थे।
जानकारी के मुताबिक स्टेट विजिलेंस ब्यूरो की जांच इंडियन हार्डवेयर कंपनी के रिहायशी प्लॉट से शुरू हुई। विजिलेंस को प्रथम दृष्टि में ही एलाटमेंट करने में अनेक खामियां दिखाई दी। जिसका जिक्र जांच रिपोर्ट में भी किया गया है। एलाटमेंट के दौरान प्लॉट के शुल्क जमा करने को लेकर भी विजिलेंस ने अनेक सवालिया निशान लगाते हुए फरीदाबाद तहसील विभाग के अधिकारियों पर सवालिया निशान लगाए हैं और उन्हें प्लॉट मालिक से मिलीभगत के संदेह में रखा गया है। इसके बाद इंडियन हार्डवेयर कंपनी ने यह जमीन करीब नौ लोगों को बेच दी गई और तमाम खामियां होते हुए भी अपने पद का दुरूपयोग करते हुए 6 टुकड़ों में उनके नाम रजिस्ट्री कर दी गई। विजिलेंस के अनुसार यह रजिस्ट्री करना पूरी तरह से गलत पाया गया। रजिस्ट्री होने के बाद इंडियन हार्डवेयर कंपनी के निदेशक अजय गुप्ता के नाम से नगर निगम को उपरोक्त प्लॉट के सब-डिवीजन के लिए आवेदन किया गया जबकि नियमानुसार रजिस्ट्री होने से पहले प्लॉट का सब-डिवीजन होना अनिवार्य माना जाता है। लेकिन सभी तथ्यों को छुपाते हुए 27 अगस्त, 2014 को नगर निगम में सब-डिवीजन के लिए इंडियन हार्डवेयर के निदेशक अजय गुप्ता की ओर से आवेदन किया गया। आवेदन मिलते ही नगर निगम की ओर से इंडियन हार्डवेयर के निदेशक अजय गुप्ता के आधे-अधूरे पते पर एक पत्र भेजा गया ताकि उनसे सब-डिवीजन के आवेदन को लेकर औपचारिकता पूरी करने के लिए कहा जा सके।
दरअसल आधे-अधूरे पते पर पत्र भेजने का असल मकसद तो यह था कि इस बारे में अजय गुप्ता को पता ही ना चले और चुपचाप सब-डिवीजन हो जाए। परंतु अजय गुप्ता की जानकारी में सारा मामला आ गया और उन्होंने तत्काल अपने लैटर हैड पर लिखकर नगर निगम को सूचित कर दिया कि सब-डिवीजन के लिए उनकी ओर से कोई आवेदन नहीं किया गया है। हालांकि सब-डिवीजन के लिए जब इंडियन हार्डवेयर की ओर से नगर निगम में आवेदन किया गया, उस समय तो उक्त कंपनी इस प्लॉट की मालिक ही नहीं थी क्योंकि वह प्लॉट को पहले ही बेच चुकी थी। मजेदार बात तो यह है कि निगम अधिकारियों ने सादे कागजों पर किए गए आवेदनों पर ही सब-डिविजन कर नक्शे पास कर दिए थे। दस्तावेजों के मुताबिक 27 अगस्त, 2014 को सब-डिवीजन हेतु आवेदन किया गया जबकि 21 जनवरी, 2014 को तो इंडियन हार्डवेयर के निदेशक अजय गुप्ता यह प्लॉट ही बेच चुके थे। ऐसे में उनके नाम से आवेदन करना किसी भी सूरत में उचित नहीं था। विजिलेंस ब्यूरो ने जहां तत्काल यह बड़ी गलती पकड़ ली, वहीं अजय गुप्ता ने भी निगम प्रशासन को पत्र भेजकर आवेदन करने से ना केवल इंकार कर दिया था, बल्कि आवेदन पत्र पर अपने फर्जी हस्ताक्षर करने का भी आरोप लगा दिया। बावजूद इसके नगर निगम ने हार्डवेयर चौक के उक्त रिहायशी प्लॉट का ना केवल सब-डिवीजन कर दिया, बल्कि वहां के नक्शे तक पास कर दिए।
कई साल तक चली जांच में स्टेट विजिलेंस ब्यूरो ने तत्कालीन योजना सहायक जितेंद्र सिंह, तत्कालीन DTP आर.पी. सिंगला, तत्कालीन चीफ टाऊन प्लानर सतीश पाराशर, सुमन वर्मा पत्नी पुष्पेन्द्र वर्मा निवासी 1687, सैक्टर-28, फरीदाबाद, पुष्पेन्द्र वर्मा पुत्र एस.आर. वर्मा, निवासी 1687, सैक्टर-28, फरीदाबाद, प्रशांत शर्मा पुत्र डॉ.एस.पी. शर्मा निवासी, इन्द्रप्रस्थ कालोनी, सोनीपत रोड़, मॉडल टाऊन, रोहतक, अशोक वर्मा सुपुत्र साधुराम निवासी मॉडल टाऊन, रोहतक, नितिन वर्मा पुत्र अशोक वर्मा निवासी मॉडल टाऊन, रोहतक, विनोद भंसाली सुपुत्र पुखराज बंसाली निवासी म.न.-10, डी-42, सैक्टर-10, डीएलएफ, फरीदाबाद, संजय भंसाली सुपुत्र पुखराज बंसाली निवासी म.न.-10, डी-42, सैक्टर-10, डीएलएफ, फरीदाबाद, अभय भंसाली सुपुत्र पुखराज बंसाली निवासी म.न.-10, डी-42, सैक्टर-10, डीएलएफ, फरीदाबाद तथा विनोद देवी सुपुत्री चैनरूप कुण्डलिया निवासी म.न.-1588, सैक्टर-7ई, फरीदाबाद को दोषी माना है।
आरोप है कि इन लोगों ने मिलीभगत करके साक्ष्यों को छुपाकर नियमों को ताक पर रखकर उक्त व्यक्तियों को अनुचित फायदा पहुंचाने की नीयत से यह सब फर्जीवाड़ा किया है।
अब देखना अब यह है कि इस मामले में आरोपियों के खिलाफ क्या कार्रवाई अमल में लाई जाती है। -FIR दर्ज होने के बाद की कार्यवाही को जानने के लिए पढ़ते रहिए मैट्रो प्लस www.metroplus.online

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