नवीन गुप्ता
फरीदाबाद, 4 फरवरी:
30वें सूरजकुंड शिल्प मेले की तीसरी सांस्कृतिक संध्या हरियाणवी गीत, नृत्य, संगीत व रागनियों से सराबोर हो गई। मेले की चौपाल में आयोजित किए गए। इस कार्यक्रम में गजेंद्र फौगाट, महाबीर गुड्डू व हरिंद्र राणा जैसे सुप्रसिद्ध हरियाणवी गायक कलाकारों ने प्रदेश की समृद्ध संस्कृति को अपनी शानदार प्रस्तुतियों से जीवंत किया। कार्यक्रम का आयोजन सांस्कृतिक कार्य विभाग हरियाणा के सौजन्य से किया गया। हरियाणा पर्यटन निगम के प्रबंध निदेशक एवं मेला प्राधिकरण के मुख्य प्रशासक विकास यादव ने बतौर मुख्य अतिथि दीपशिखा प्रज्वलित करके इस सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
कार्यक्रम की शुरुआत हरिंद्र राणा व साथियों के कलाकारों से हुई। हरियाणवी लहंगा चुन्नी में सजी धजी नृत्य कलाकारों ने रागनी-घोड़ी आगी-घोड़ी आगी खूब नचावांगे, फूलबदन के ब्याह में सारे रंग जमावांगे के मनभावन बोलों पर जमकर नृत्य किया।
गजेंद्र फौगाट ने हरियाणवी पॉप, लोकगीत व चुटकले प्रस्तुत करके श्रोताओं की खूब तालियां बटोरी। गजेंद्र ने हम सीधे-साधे माणस ना बेरा हारे स्टैण्डर्ड का, ल्यो जिकर सुणो हरियाणे का, हारे सीधे-साधे बाणे का, बापू ने गाम में घर बणाया था, ला माटी चूना जी, इब सैक्टर आली कोठी में मेरा जी ना लागता जी तथा कल रात माता का मुझे ई-मेल आया है जैसे अपने लोकप्रिय गीतों को एक के बाद एक सुना कर लोगों का भरपूर मनोरंन किया।
डीएवी कॉलेज फरीदाबाद की ओर से करण सैनी व साथी कलाकारों ने देश भक्ति हरियाणवी रंगा-रंग नृत्य की प्रस्तुति-असली मां का दूध पिए जिब जाणूंगी तनै पिया, छिड़ी लड़ाई बार्डर की जई सीना ताण पिया गीता के जोशिले बालों पर की।
पंंं० लख्मीचंद सम्मान से नवाजित हरियाणा के जाने-माने कलाकार महावीर गुड्डू ने अपने साथी कलाकारों सहित-फागण तो आयारी सब खेलें लोग लुगाई, कोरड़ा ठाल्या नै तू भाभी क्यूं शर्माई जैसे मनोहारी व रंगा-रंग फाग गीत के बोलों पर जबरदस्त नृत्य से बसंती रंग बिखेरे। गुड्डू ने शहीद-ए-आजम भगत सिंह की माता द्वारा दिए प्रोत्साहन को अपनी रागनी-सौ-सौ पडें मुसीबत बेटा उमर जवान में, भगत सिंह कदै घबरया जा तेरा बंद मकान में गाकर बयां किया।
मेला की चौपाल पर मौजूद अनेक अधिकारियों व कर्मचारियों के अलावा सैंकड़ों की तादाद में उपस्थित हरियाणवी संस्कृति को चाहने वाले श्रोताओं ने हरियाणवी गीत-संगीत व नृत्य की छटा से सजी इस सांस्कृतिक संध्या का भरपूर आनंद लिया।
आज के इस मशीनी युग में हस्तशिल्प के कलाकारों की सुंदर शिल्पकारी और धागों के ताने-बाने से बनी चीजें दांतों तले उंगलियां दबाने को मजबूर कर देती हैं। ऐसा ही नजारा देखा जा सकता है। सूरजकुण्ड शिल्प मेले के स्टाल नंबर-185 पर जहां कि इस मेले के थीम स्टेट तेलंगाना के जिला वारंगल से आई दरी व कारपेट शिल्पी बी स्वरूपा ने अपनी हाथ की कारीगरी का चित्रण पेश किया है।
लगभग 36 वर्षीया बी स्वरूपा कहती हैं कि उन्होंने अपनी यह पुश्तैनी कला उनके साथ आए हुए 57 वर्षीया उनके पिता पिट्टारामलू से 21 वर्ष की आयु में उस समय सीखी जबकि उनकी शादी बी नरसैया से हुई। वह बचपन से पिता को घर में हैंडलू पर दरियां व कारपेट बनाने के लिए बाजार से धागा लाकर उन पर नैचुरल डाई करके इस कारीगरी को करते हुए देखती थी मन में याल आता कि मैं भी क्यूं न अपने पापा से इस हुनर को सीख लूं ताकि कला ज्ञान के एहसास के साथ-साथ भविष्य में अपनी रोजी-रोटी स्वयं कमा कर आत्मनिर्भर बन सकूं। स्वरूपा ने जल्द ही यह हुनर सीख लिया और अपने पति नरसैया को भी सिखाया।
बी स्वरूपा ने अपनी हैंण्डलूम पिता के ही साथ अपने मायके गांव कोठवाड़ा, वारंगल में लगा ली। उन्होंने ऐसी युनिट तैयार की जिसमें पिता, बेटी व दामाद के दिशा-निर्देश में अपने सहयोगी कारीगर रख कर दरियों व कारपेटों का हैण्डलूम पर ही भारी उत्पादन किया जाता रहा है। उनकी दरियां व कारपेट दो बाई तीन फुट से लेकर छह बाई नौ फुट तक साइज के हैं। वे कच्चा माल हैदराबाद शाखा से भी ले लेते हैं। अपनी मन भावन दरी-कारपेटों को हैदराबाद, मंबई व दिल्ली हाट के अलावा विदेशी खरीददारों के माध्यम से भी बेचते हैं। स्वरूपा मेले में अपना स्टाल लगाकर खुश हैं और प्रसन्नता यह भी है कि उनका नवगठित प्रदेश तेलंगाना जल्द ही इस बार सूरजकुंड क्रा टस मेले का थीम स्टेट बना है।_DSC0730_DSC0703_DSC0727

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