सरस्वती नदी का सम्बंध सीधा ज्ञान से है: मुख्यमंत्री
नवीन गुप्ता
चण्डीगढ़: 25 नवंबर:
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने कहा है कि भारतीय संस्कृति की प्रतीक सरस्वती नदी को ज्ञान और विवेक के रूप में जाना जाता है और इसकी अविरल धारा निरंतर प्रवाहित होती रही। उन्होंने अधिकारियों को दिसम्बर माह के अंत तक हरियाणा में इसके उद्गम स्थल आदि बद्री से सिरसा जिले के ओटू हैड तक प्रवाह मार्ग का सीमांकन करने के निर्देश दिये। मुख्यमंत्री जो हरियाणा सरस्वती धरोहर बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं, यहां बोर्ड की बुलाई गई प्रथम बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि दुनिया की हर नदी किसी न किसी परम्परा से जुड़ी हुई है केवल सरस्वती नदी ऐसी नदी है जिसका सम्बंध सीधा ज्ञान से है और सरकार का भरपूर प्रयास है कि सरस्वती नदी की निर्मल जलधारा पृथ्वी के धरातल पर बहे इसके लिए हरियाणा के साथ-साथ भारत सरकार के स्तर पर भी व्यापक रूप में कार्य चल रहा है। उन्होंने कहा कि हमारा प्रयास है कि सरस्वती नदी के साथ-साथ यहां विश्वस्तर का आध्यात्मिक पर्यटन स्थल भी विकसित किया जाएगा। इसके अलावा सरस्वती नदी के किनारे बसी सरस्वती सभ्यता एवं संस्कृति से ओत-प्रोत नगरों को सरस्वती तीर्थ के रूप में विकसित किया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने प्रदेश के सभी जिलों में 17 से 21 दिसम्बर तक मनाए जा रहे गीता जयंती उत्सव के दौरान सरस्वती धरोहर बोर्ड पर प्रदर्शनी लगाने के निर्देश दिये ताकि अधिक से अधिक लोगों को सरस्वती नदी के बारे में जानकारी हो सके। मुख्यमंत्री ने कुरूक्षेत्र विकास बोर्ड का विस्तार करने तथा पिहोवा तीर्थ स्थल के लिए अलग से ट्रस्ट बनाने के भी निर्देश दिये हैं। बैठक में बसंत पंचमी के अवसर पर यमुनानगर, कैथल और कुरूक्षेत्र जिलों में तीन दिवसीय सरस्वती महोत्सव का आयोजन करने की भी स्वीकृति प्रदान की। इसके अलावा दिल्ली में एक अन्तर्राष्ट्रीय समारोह का आयोजन करने को भी मंजूरी दी गई है।
पर्यटन विभाग की प्रधान सचिव श्रीमती सुमिता मिश्रा ने बैठक में अवगत करवाया कि वर्तमान में आदिबद्री कपाल मोचन मुस्तफाबाद तथा पिहोवा में चार स्थानों पर 10 करोड़ रुपये की लागत से सरस्वती तीर्थ स्थल विकसित करने के कार्य चल रहे हैं जिसके तहत घाट जीर्णोंद्वार किये जा रहे हैं।
सरस्वती धरोहर बोर्ड के डिप्टी चेयरमैन प्रशांत भारद्वाज ने सरस्वती नदी के प्रवाह मार्ग पर इसरो व अन्य स्त्रोतों से प्राप्त की गई जानकारियों पर प्रस्तुतिकरण भी दिया और भावी परियोजनाओं के बारे जानकारी दी। उन्होंने बताया कि आदि बद्री के पास सोम्ब नदी पर बांध बनाकर एक बड़ी झील बनाई जाएगी जिससे सरस्वती यानि (सरस का समागम) चरितार्थ हो जाएगा। इसके बनने से भू-जल स्तर बढ़ेगा तथा सिंचाई के लिए भी सरस्वती नदी का जल उपयोग में लाया जाएगा। उसी प्रकार दूसरी झील पिहोवा के निकट स्योंसर के वन क्षेत्र में बनाई जाएगी ताकि वन्य प्राणियों को पानी उपलब्ध कराया जा सके। बोर्ड की प्राथमिकताओं में हरियाणा में खुदाई से प्राप्त पुरास्थलों का विकास व हर एक पुरास्थल पर एक अंवेषण व संग्रहालय केन्द्र की स्थापना की जाएगी जहां पर खुदाई में प्राप्त अवशेषों को रखा जा सके। ताकि आने वाली पीढिय़ां अपनी महान संस्कृति से परिचित हो सके।
उन्होंने बताया कि नवंबर 1985 में मोरोपंत पिंगले की प्रेरणा से उज्जैन के शिला लेख एक पुरातत्वविद् पदमश्री विष्णु सदाशिव वाकणकर ने सरस्वती नदी को खोजने का संकल्प लेकर एक शोध यात्रा आदि बद्री से आरम्भ की जो 40 दिन में 4000 कि०मी० चलकर कच्छ के रण में सम्पन्न हुई। सरस्वती नदी शोध संस्थान ने इस दिशा में उल्लेखनीय भूमिका अदा की। सरस्वती नदी शोध संस्थान अध्यक्ष दर्शनलाल जैन की तपस्या रूप अथक प्रयासों से आज सरस्वती नदी आज पुन: धरा पर प्रवाहित हो रही है।
उन्होंने नदी के नामकरण की वैज्ञानिक प्रक्रिया को विस्तार से समझाया कि बंदरपूंछ ग्लेशियर से निकलने वाली सरस्वती नदी को विभिन्न स्थानों पर किन-किन नामों से पुकारा जाता है। उन्होंने सरस्वती नदी के संबंध में इसरो नासा द्वारा किये गये शोध को आधार बनाते हुए सरस्वती नदी की भूमिगत प्रवाहित धाराओं के विद्यमान होने की पुष्टि की। विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं जिनमें भाभा परमाणु अनुसंधान संस्थान प्रमुख है परीक्षणोपरांत यह सिद्ध हुआ कि भूमिगत धारा का पानी वर्षा का न होकर उसी ग्लेशियर का पानी है जहां से सरस्वती का उद्गम स्रोत बताया गया है। उन्होंने सरस्वती धरोहर बोर्ड के गठन के लिए हरियाणा सरकार विशेषकर मुख्यमंत्री की सराहना भी की।
इस अवसर पर पर्यटन मंत्री रामबिलास शर्मा, मुख्य सचिव डीएस ढेसी, वित्त विभाग के संजीव कौशल, सिंचाई विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव रामनिवास, पर्यटन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव विजय वर्धन, ओएसडी विजय शर्मा, सूचना जनसम्पर्क एवं सांस्कृतिक कार्य विभाग के महानिदेशक डॉ० अभिलक्ष लिखी, यमुनानगर, कुरूक्षेत्र, कैथल व सिरसा के उपायुक्तों के अलावा कुरूक्षेत्र विकास बोर्ड व सरस्वती धरोहर बोर्ड के सदस्य भी उपस्थित थे।

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