मैट्रो प्लस से नवीन गुप्ता की खास रिपोर्ट
फरीदाबाद, 24 मार्च:
वर्तमान समय में पूरी दुनिया के लोग डिप्रेशन, चिंता, एंग्जायटी, बाइपोलर, घबराहट की समस्या और पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस आदि मानसिक बीमारी जैसे अवसादों के रूप में एक चुनौती का सामना कर रहे हैं। इस मामले में जानकार रजत अग्रवाल का कहना है कि WHO के अनुसार उक्त मानसिक बीमारियां दुनियाभर में कुल रोग स्थितियों का लगभग 18 प्रतिशत है। वहीं एक अनुमान यह भी बताता है कि भारत उक्त मानसिक रोगों से प्रभावित सबसे बड़ी आबादी वाले देशों में से एक देश है। इसके अलावा सन् 2000 से 2018 के बीच एक अध्ययन के अनुसार भारत में छह लोगों में से एक डिप्रेशन जैसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त है और यह बीमारी पान्डेमिक में हर दिन बढ़ रही है जोकि एक गंभीर चिंता का विषय है।
रजत अग्रवाल के मुताबिक देखने में आता है कि भारत के लोगों में अपने मानसिक स्वास्थ्य को खोने का पहला और महत्वपूर्ण कारण इस मुद्दे के बारे में जागरूकता और संवेदनशीलता की कमी है। किसी भी तरह के मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से पीडि़त लोगों को अलग समझा जाता रहा है जबकि ये सिर्फ एक आम बीमारी जैसे की पेटदर्द, जुखाम, टाइफाइड या मलेरिया की तरह ही है। अंतर सिर्फ इतना है के इनके बारे में जागरूकता कम है।
आप क्रिकेट और हॉकी का ही उदाहरण ले लीजिये। हमारे पास क्रिकेट में विश्वस्तरीय खिलाड़ी हैं क्योंकि लोग क्रिकेट ज्यादा देखते हैं। क्रिकेट में इंवेस्टमेंट ज्यादा होता है और जो अंत मे खिलाडिय़ों की प्रगति में ही काम आता है। हमारे हॉकी के खिलाड़ी भी किसी से कम नहीं हैं पर वह इन्वेस्टमेंट नहीं है। इसी प्रकार से मलेरिया और जुखाम सब जानते है। इसलिये एक साधारण बात है, जब हम मानसिक स्वास्थ्य के बारे मे बात करना शुरू करेंगे और इसको जुखाम की तरह साधारण बना देंगे तो लोगों मे इसको शेयर करने में हिचक नहीं होगी और फिर सब बाहर निकल के आसानी से अपनी परेशानी व्यक्त कर पाएंगे। यही एक पहला और आखिरी तरीका है इस बीमारी से लडऩे का।
मानसिक स्वास्थ्य को खासकर भारत मे गंभीरता से नहीं लिया जाता और इस बीमारी को कुछ लोग एक अलग ही श्रेणी मे रखते हैं। इससे रोगियों को अपनी परेशानी शेयर करने मे शर्म और पीड़ा का एहसास होता है। इसके अलावा, भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों की गंभीर कमी है। हमें सहकर्मी नेटवर्क बनाकर रोगियों को एक-दूसरे से जोडऩे के लिए भी कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि वे एक-दूसरे को सुन सकें और उनका समर्थन कर सकें। इसके अतिरिक्त, मानसिक स्वास्थ्य को अनिवार्य रूप से जीवन बीमा के दायरे में रखा जाना चाहिए। इससे लोगों को मानसिक बीमारियों को उसी तरह से देखने में मदद मिलेगी जैसे वे शारीरिक रोगों के लिए उपयोग करते हैं।
आज स्वच्छ मानसिक स्वास्थ्य अभियान जैसे अभियानों के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जनता को अवगत कराने की जरूरत है। अभियान लोगों को उनकी मानसिक भलाई के बारे में बात करने और एक चिकित्सक या मनोचिकित्सक तक पहुंचने के लिए प्रोत्साहित करेगा, अगर उन्हें ऐसा करने की आवश्यकता होती है। इस बीमारी के बारे में जागरूकता, नि:स्वार्थता से मदद और उचित मेडिकल उपलब्धता ही स्थिति को सुधारने का एकमात्र तरीका है। मानसिक बीमारी का समाधान मंदिर जाने, आयुर्वेदिक एवं होम्योपैथिक डॉक्टर के पास जाने से नहीं बल्कि मनोचिकित्सक एवं मनोविज्ञानी के परामर्श से हो होगा, यह बात जाननी भी बहुत जरूरी है।
किसी के साथ होना जो किसी मानसिक रोग का सामना कर रहा हो और उन्हें यह विश्वास दिलाना कि आप हमेशा उनके साथ खड़े रहने वाले हैं, बहुत साहस और गर्व की बात है। आप उन्हें नियमित रूप से कहें और सुनिश्चित करें कि जब उन्हें आपकी आवश्यकता हो तो आप हमेशा उनके साथ खड़े हों। सुनिश्चित करें कि आप उनकी हरसंभव मदद कर सकते हैं। मदद कुछ भी हो सकती है, उनकी बात सुनना, उन्हें डॉक्टर के पास ले जाना, उनके माता-पिता से बात करना या उनकी आर्थिक मदद करना। उन्हें बताएं कि चाहे कुछ भी हो, आप चिंता न करें। मैं आपके साथ हूं। मुझे कभी भी फोन कर सकते हो। उन्हें कभी भी आपको कॉल करने की अनुमति दें, उन्हें अपने जीवन में प्राथमिकता दें। समस्या लंबे समय तक नहीं रहेगी लेकिन आपकी करुणा और बड़ा दिल हमेशा बना रहेगा।
बता दें कि रजत अग्रवाल और उनकी पूरी टीम मानसिक स्वास्थ्य के विषय में लोगों को जागरूक करने में पिछले 5 साल से आर्थिक सहायता, दिशा-निर्देश और भावनात्मक रूप से निरंतर प्रयास कर रही है। उन्हें इस समस्या से लडऩे के लिए ऐसी अनेक लोगों की जरूरत है जो मानसिक स्वास्थ्य जैसे विषयों पर लगातार प्रकाश डाल सकें।

मानसिक स्वास्थ्य पर आवाज उठाने वालों में एक छुपा नाम रजत अग्रवाल:
यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति के बारे में है जो मानसिक बीमारी को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाते हैं और जो लोग इससे पीडि़त हैं उनकी मदद करते हैं। ऐसे व्यक्ति का नाम है रजत अग्रवाल।
बकौल एक पीडि़त मैं रजत अग्रवाल के उन शुभचिंतकों में से एक हूं जो नहीं चाहते कि मेरा नाम कहीं प्रकाशित हो क्योंकि यह कहानी गंभीर अवसाद यानि डिप्रेशन के बारे में है। बता दूं कि मैं गंभीर डिप्रेशन से पीडि़त था जिसके चलते मैं रजत अग्रवाल नामक एक व्यक्ति के लेख यानि आर्टिकल पर आया था। उसने अपनी प्रोफाइल पर वहां अपने नंबर का उल्लेख किया है। मैंने कुछ महीने पहले उनसे संपर्क किया था। उन्होंने मेरी समस्या पूरी तरह से सुनी और मुझे बहुत धैर्य से निर्देशित किया। मैं अपने माता-पिता को बताने से डर रहा था लेकिन उनके बारे में उससे बात करना इतना आसान था। मैं उस समय मनोचिकित्सकों या किसी भी मनोवैज्ञानिक को अफोर्ड नहीं कर सकता था क्योंकि मैंने कॉलेज शुरू किया था। लेकिन इस आदमी ने मुझे ठीक होने तक डॉक्टर के परामर्श शुल्क और दवा के बिलों के साथ मदद की। मैं इसके बाद भी उनसे संपर्क में रहा।
उनसे बात करने के बाद मुझे पता चला कि यह आदमी डिप्रेशन और अन्य मानसिक बीमारियों से पीडि़त लोगों की मदद कर रहा है, उन्हें मनोचिकित्सकों, मनोवैज्ञानिकों और चिकित्सक के पास भेज रहा है। वह हमेशा उन लोगों के लिए उपलब्ध होता है जिन्हें मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। वह एक आईटी फर्म के लिए काम करता है और वह अपने वेतन का उपयोग रोगी की दवाओं और नियुक्ति शुल्क के भुगतान के लिए करता है जो इसे वहन नहीं कर सकते। उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य के बारे में लोगों के लिए जागरूकता फैलाई और उन्होंने पहले से ही भारत और बाहर सैकड़ों रोगियों को कवर किया है। मानसिक बीमारी से पीडि़त कोई भी व्यक्ति उनसे सम्पर्क कर सकता है और वह हमेशा उपलब्ध रहते है। उन्होंने मेरे और कई लोगों के लिए बहुत कुछ किया है और मुझे गंभीरता से लगता है कि उन्हें पहचानने की जरूरत है क्योंकि वह एक ऐसे मुद्दे पर प्रकाश डाल रहे हैं जिसे कोई नहीं उठा रहा है और यह बेहद महत्वपूर्ण है।
उन्होंने बिना कोई एहसान लिए मेरी और सैकड़ों लोगों की मदद की। इस तरह के लोगों को पहचानने की जरूरत है और यह उनके लिए भी थोड़ा भुगतान होगा।

Rajat Agarwal: 8884937709 (call) 9034808886 (WhatsApp) His mail id: rajataggarwal168@gmail.com

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