मैट्रो प्लस से शम्भूनाथ गौतम/नवीन गुप्ता की रिपोर्ट
नई दिल्ली, 21 अप्रैल: रविवार सुबह श्रीलंका में हुए बम धमाकों के बाद लगभग 10 वर्षों से शांत यह देश आज फिर जल उठा। चर्च और होटलों में हुए सीरियल बम धमाकों में लगभग 150 से अधिक लोगों की मौत हो गई और 300 लोग घायल हो गए। एक दौर था कि श्रीलंका में ऐसे धमाके आए दिन और आम घटना हो गई थी। आइए आपको वर्ष 1980 के आसपास लिए चलते हैं। श्रीलंकाई तमिलों की सांस्कृतिक राजधानी जाफना में एक सार्वजनिक पुस्तकालय में आग लगाए जाने की घटना से तमिल समुदाय की भावनाएं और अधिक भड़क उठीं। उस दौरान लिट्टे का प्रमुख प्रभाकरण श्रीलंका के साथ विश्व के तमाम देशों के लिए एक खौफनाक चेहरा बन चुका था। श्रीलंका के लिए 1980 का दशक जबरदस्त संघर्ष का दौर था, जब वो तमिल राष्ट्रवादी समूह यानी लिट्टे से मुकाबला कर रही थी। लिट्टे ने श्रीलंका के जाफना द्वीप पर कब्जा कर लिया था। श्रीलंका की सेना के लिए इस आतंकी संगठन से निपट पाना मुश्किल होता जा रहा था। श्रीलंका ने भारत सरकार से मदद मांगी। भारत की ओर से भेजी गई शांति सेना के साथ मिलकर श्रीलंका ने जाफना को तो अपने कब्जे में ले लिया लेकिन इस पूरे संघर्ष के दौरान 80 हजार से ज्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। धीरे-धीरे लिट्टे ने जाफना के साथ श्रीलंका के कई भूभागों पर कब्जा कर चुकी थी। अब लिट्टे से निपटना न तो श्रीलंका की सरकार के बस में था न ही सेना के पास इतनी शक्ति थी कि वो लिट्टे की सेना से मुकाबला कर पाती। अब आए दिन लिट्टे अपनी पृथक मांगों को लेकर श्रीलंका में खून-खराबा, बम विस्फोट, हिंसा और नेताओं की हत्या करने लगे।

पहली बार मानव बम का इस्तेमाल इसी आतंकी संगठन ने किया था:
लिट्टे ऐसा पहला आतंकी संगठन था जिसने पहली बार मानव बम की अवधारणा पेश की। इस आतंकी संगठन ने अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए इंसानों का इस्तेमाल किया। इंसान के शरीर पर बम लगाकर इन्होंने बड़ी आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया। साल 1991 में इस मानव बम से पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की चेन्नई के निकट एक आत्मघाती हमले में मारे गए। उसके बाद 1993 में लिट्टे के आत्मघाती हमलावरों ने श्रीलंकाई राष्ट्रपति प्रेमदास की हत्या की। धीरे-धीरे यह आतंकी संगठन कई श्रीलंका के नेताओं की हत्या करते चला गया। अब लिट्टे श्रीलंका की सरकार के लिए नासूर बन गया था। पूरे देश में गृहयुद्ध के हालात हो गए थे। श्रीलंका में महिंद्रा राजपक्षे ने जब राष्ट्रपति की शपथ ली तो उन्होंने ही देश से लिट्टे के खात्मा करने की कमर कस ली। वर्ष 2006 में श्रीलंका सरकार और लिट्टे की वार्ता असफल हो गई। उसके बाद श्रीलंका सेना ने इस आतंकी संगठन के खिलाफ काफी आक्रामक कार्रवाई शुरू कर दी। आखिरकार राष्ट्रपति राजपक्षे ने 16 मई, 2009 को देश से लिट्टे का सफाया कर दिया। और इसी के साथ लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण समेत कई विद्रोही सेना की कार्रवाई में मारे गए।

 

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