मैट्रो प्लस से नवीन गुप्ता की स्पेशल रिपोर्ट
फरीदाबाद, 28 फरवरी
: नगर निगम का आखिर वो कौन सा ऐसा अधिकारी है जिसने उस अवैध निर्माण को बनने देने की एवज में अवैध निर्माणकर्ता से 10 लाख रूपये लिए हैं जिसको तोडऩे से रोकने के लिए कल वीरवार को निगम के दो JE का आपस में सार्वजनिक रूप से झगड़ा हो गया था, यह चर्चाएं आज पूरे नगर निगम मुख्यालय में होती रहीं। हालांकि निगम के HCS स्तर के एक चर्चित अधिकारी का नाम इस रिश्वतखोरी के मामले में सामने आ रहा है लेकिन निगम को कोई अधिकारी फिलहाल इस मामले में अधिकारिक तौर पर या खुलकर बोलने को तैयार नहीं हैं। इस बात/राज को खुलासा तो निगम का महेन्द्र रावत नामक वो जेई ही कर सकता है जोकि उक्त अवैध निर्माण को तोडऩे से रोकने के लिए मौके पर पहुंचा था और वहां अपने उच्च अधिकारी के कहने पर तोडफ़ोड़ करने पहुंचे जेई सुमेर सिंह से जबरन भिड़ गया था। इस घटनाक्रम से निगम की शहर में काफी किरकिरी हो रही है। कंगाली में डूबा नगर निगम फरीदाबाद यानि एमसीएफ इस मामले से फिर से चर्चाओं में हैं।
काबिलेगौर रहे कि कल वीरवार को बडख़ल विधानसभा के अंतर्गत एनएच-3 में निगम का तोडफ़ोड़ दस्ता अपने एक अधिकारी के निर्देश पर जेई सुमेर सिंह के नेतृत्व में एनएच-3/168 में हो रहे अवैध निर्माण को तोडऩे पहुंचा हुआ था। अवैध निर्माण पर तोडफ़ोड़ शुरू हो पाती उससे पहले ही वहां पहुंचे निगम के एक एचसीएस स्तर के अधिकारी के दूत जेई महेंद्र रावत ने उस तोडफ़ोड़ को नहीं होने दिया और तोडफ़ोड़ करने पहुंचे जेई सुमेर सिंह से भिड़ गया। दो जेईके बीच हुई नोकझोंक और कहासुनी के बीच जेई सुमेर सिंह के सरियों पर गिर जाने के कारण चोट भी लग गई बताई जा रही है। जिस कारण तोडफ़ोड़ दस्ता बिना तोडफ़ोड़ करे ही वापिस आ गया।
इस मामले की छानबीन करने पर पता चला कि रिहायशी एरिया में खुलेआम हो रहे उक्त जिस अवैध कमर्शियल निर्माण को तोडऩे के लिए तोडफ़ोड़ टीम गई थी उसकी शिकायत सीएम विंडो और निगमायुक्त को राष्ट्रीय भ्रष्ट्राचार निर्मूलन परिषद के प्रदेशाध्यक्ष राजेश भाटिया द्वारा की गई थी। बताया जा रहा है कि इन्हीं शिकायतों के आधार पर निगमायुक्त ने इस मामले को देखने के निर्देश एक एक्सईएन को दिए थे जिसपर उस एक्सईएन ने जेई सुमेरसिंह को उक्त अवैध निर्माण को तोडऩे भेज दिया जहां कि उपरोक्त घटनाक्रम घटा।
बताया जा रहा है कि राजेश भाटिया की शिकायत पर ही इससे पहले निगम के तोडफ़ोड़ दस्ते ने मौके पर जाकर अवैध निर्माण को रूकवाकर वहां से काफी सामान जब्त कर लिया था। इस सामान को भी बताते हैं कि जेई महेन्द्र रावत ने जबरन अवैध निर्माणकर्ता को तोडफ़ोड़ दस्ते की अनुपस्थिति में वापिस कर दिया था। और अब जब कल की घटना ने तो खुले में ही साबित कर दिया है कि जिस प्रकार से जेई महेन्द्र रावत ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर तोडफ़ोड़ टीम का काम रोककर सरकारी काम में बाधा पहुंचाने का काम किया है, उससे स्पष्ट है कि इस अवैध निर्माण को करवाने और जेई महेन्द्र रावत को संरक्षण देने में किसी बड़े अधिकारी का हाथ है।
हालांकि इस मामले में निगमायुक्त डॉ. यश गर्ग ने जांच की बात कही है लेकिन वो जांच कब तक पूरी होगी, अभी स्पष्ट नहीं है।
यहां अपने पाठकों को यह भी बता दें कि यह वही महेन्द्र रावत जेई है जिसको कि सन् 2000 में रंगे हाथों पांच हजार की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया था औा उसे जेल की सलाखों के पीछे रहना पड़ा था। इसके साथ के जेई तो अब एक्सईएन तक बन गए हैं लेकिन ये अभी तक वहीं का वहीं है।

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