मैट्रो प्लस से नवीन गुप्ता की स्पेशल रिपोर्ट
नई दिल्ली, 15 जनवरी:
देश के बहुचर्चित निर्भया मामले में लगता है 22 जनवरी को भी दोषियों को फांसी पर नहीं लटकाया जाएगा। जी हां, ये हम नहीं बल्कि दिल्ली सरकार कह रही है जिसने हाईकोर्ट को बताया है कि 2012 के दिल्ली गैंगरेप मामले के चार दोषियों को 22 जनवरी को फांसी नहीं दी जाएगी। इसका कारण दिल्ली सरकार ने बताया है कि चूंकि चारों दोषियों में से एक दोषी की दया याचिका अभी भी राष्ट्रपति के समक्ष लंबित है, इसलिए ये कार्यवाही नहीं हो सकती।
मिली जरनकारी के मुताबिक दिल्ली सरकार और जेल अधिकारियों ने जस्टिस मनमोहन और जस्टिस संगीता ढींगरा सहगल की अदालत को बताया है कि नियमों के तहत डेथ वारंट पर कार्रवाई करने से पहले दया याचिका पर निर्णय आना ज़रूरी है।
वहीं दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा ने कहा है कि किसी भी सूरत में निर्भया के दोषियों को 22 जनवरी को फांसी संभव नहीं है। 21 जनवरी को दोपहर को वे ट्रायल कोर्ट का रुख करेंगे, अगर दया याचिका खारिज होती है तो भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक़ अभियुक्तों को 14 दिन की मोहलत वाला नया डेथ वारंट जारी करना होगा।
ध्यान रहे कि साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में साफ किया था कि राष्ट्रपति की ओर से दया याचिका ख़ारिज होने के बाद भी अभियुक्तों को कम से कम 14 दिनों की मोहलत मिलना ज़रूरी है, जो कानून की इन पर भी लागू होता है।
वहीं अदालत में एएसजी मनिंदर आचार्य ने दोषी मुकेश की दया याचिका का विरोध करते हुए कहा है कि ये दया याचिका प्री-मेच्योर है और इस समय सुनने लायक नहीं है।
स्मरण रहे कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अभी दोषी मुकेश की दया याचिका पर कोई फैसला नहीं किया है। दिल्ली की जेल मैनुअल के मुताबिक दया याचिका दाखिल करने के लिए सिर्फ सात दिनों का समय मिलता है।
दोषी मुकेश की अर्जी पर दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान जज ने सवाल किया कि सुप्रीम कोर्ट साल 2017 में ही फैसला दे चुका है। और 2018 में पुनर्विचार याचिका ख़ारिज हो चुकी है। फिर क्यूरेटिव और दया याचिका क्यों नहीं दाखिल की गई थी। क्या दोषी डेथ वारंट जारी किए जाने का इंतज़ार कर रहे थे? एक वाजिब समय सीमा में इन कानूनी अधिकारों का इस्तेमाल हो जाना चाहिए।
वहीं वकील रेबेका जॉन ने 2014 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि दोषी आखिरी सांस तक अपनी पैरवी करने का अधिकार रखता है। दया याचिका ख़ारिज हो जाने के बाद भी उसे 14 दिनों की मोहलत मिल जानी ही चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील ज्ञानंत सिंह बताते हैं, क़ानून ये है कि दया याचिका ख़ारिज हो जाने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट के पास ज्यूडीशियल रिव्यू का अधिकार है। शत्रुघ्न चौहान के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ये कहा था कि दया याचिका ख़ारिज होने के बाद भी दोषियों के पास 14 दिन का समय होना चाहिए ताकि वो अपने पास उपलब्ध हर कानूनी विकल्प का इस्तेमाल कर सकें।
ज्ञानंत सिंह कहते हैं, 22 जनवरी को फांसी इसलिए नहीं होगी क्योंकि अभी दोषियों के पास दया याचिका पर राष्ट्रपति के फैैसले को भी चुनौती देने का अधिकार है।
बलात्कार और हत्या के इस मामले में चार दोषी हैं। ऐसे में सवाल ये भी उठता है कि इन सभी को एक साथ फांसी दिया जाना क्यों जरूरी है। इस प्रश्न के जवाब में अधिवक्ता ज्ञानंत सिंह कहते हैं कि यूं तो कोई कानूनी प्रावधान नहीं है कि सभी को एक साथ ही फांसी दी जाए लेकिन ऐसा इसलिए किया जाता है कि किसी भी सूरत में किसी दोषी के साथ भी अन्याय नहीं होना चाहिए।
वो कहते हैं, हमेशा से ये तरजीह दी जाती रही है कि एक साथ एक मामले में फैसला होता है तो कहीं किसी के साथ अन्याय न हो जाए इसका ध्यान रखा जाता है। अभी यदि इस दोषी को कोई राहत मिल जाए तो उससे बाकी अभियुक्तों का मामला भी प्रभावित हो सकता है। इसलिए सभी दोषियों को एक साथ ही सजा दी जाती है ताकि नेचुरल जस्टिस के सिद्धांत का पालन किया जा सके।
दिल्ली के बलात्कार मामले ने भारत में महिलाओं की सुरक्षा के सवाल को भी उठाया था। कई कार्यकर्ताओं का तर्क है कि दोषियों को फांसी देने से अपराधियों में डर पैदा होगा, वहीं कुछ सामाजिक कार्यकर्ता फांसी की सज़ा का विरोध भी करते रहे हैं।
भारत में बलात्कार पीडि़तों के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता योगिता भयाना कहती हैं कि अभी तक धनंजय चटर्जी के बाद से किसी को बलात्कार के मामले में फांसी नहीं दी गई है। वो कहती हैं, निर्भया के दोषियों को फांसी दिए जाने से अपराधियों में डर पैदा होगा। दोषी फिलहाल फांसी में देरी के लिए तरीके अपना रहे हैं। वो कहती हैं, जब अभियुक्तों को फांसी होगी तब अपराधियों में डर पैदा होगा। ्धनंजय चटर्जी के बाद से बलात्कार के मामलों में भारत में फांसी की सजा अभी हुई नहीं है। जब ये फांसी होगी तब ही हम इसके असर पर बात कर पाएंगे। हमारा मानना है कि बलात्कार के मामलों में सख़्त से सख़्त सज़ा होनी ही चाहिए।

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