मैट्रो प्लस से नवीन गुप्ता की विशेष रिपोर्ट
फरीदाबाद, 14 फरवरी: हाईकोर्ट के आदेशों के नाम पर नगर निगम प्रशासन द्वारा भारी पुलिस बल के साये में निगम के एडीशनल कमिश्रर रोहताश बिश्रोई की अगुवाई में सेक्टर-9/10 व 10/12 डिवाइडिंग रोड़ पर सोमवार व मंगलवार दो दिनों में गैर-कानूनी रूप से रिहायशी प्लॉटों पर बनी कॉमर्शियल बिल्डिंगों में सीलिंग और तोडफ़ोड़ की कार्यवाही को विरोध के बावजूद अंजाम दे दिया गया है। इस अवसर पर जहां पुलिस बल व रेपिड एक्शन फोर्स का कुशल नेतृत्व एसीपी बलबीर सिंह कर रहे थे, वहीं ड्यूटी मजिस्ट्रेट के तौर पर एसडीएम राजेश कुमार तथा ज्वाईंट कमिश्रर ओल्ड प्रशांत ने कमान संभाली हुई थी। कानूनी सलाह-मशवरे के लिए निगम के एडवोकेट सतीश आचार्य भी निगम दस्ते के साथ मौके पर ही थे।
अब सवाल यह है कि निगम टीम द्वारा हाईकोर्ट के आदेशों के नाम पर इन दो दिनों में जिस प्रकार से इस सीलिंग और तोडफ़ोड़ की कार्यवाही का अंजाम दिया गया क्या वह कार्यवाही सही और पूरी थी। जैसे कि हमें जानकारी मिली है कि कई दिनों से इस कार्यवाही को लेकर तैयारियां चल रही थी। इसी बीच इस कार्यवाही की जानकारी निगम के एक-दो अधिकारियों ने अपने उन चहेतों या कह सकते है दुधारू गायों  को दे दी जिनसे इन्होंने अपनी आर्थिक इच्छाओं की पूर्ति कर अपनी-अपनी तिजोरियां भर ली। इसकी एवज में इन अधिकारियों ने इन्हें सीलिंग व तोडफ़ोड़ से बचने के नुस्खे बता दिए और उन्हें उनके संस्थानों पर नाममात्र की कार्यवाही करने का आश्वासन दे दिया, जोकि काफी हद तक पूरा भी किया गया।
इसी का ही परिणाम था कि रिहायशी प्लॉटों में कॉमशियल गतिविधियां चला रहे दुकानदारों ने या तो अपने संस्थानों को बचाने के लिए अपने-अपने दरवाजों के आगे गारे की चिनाई की कच्ची दीवारें सफेदी कर अस्थायी तौर पर खड़ी कर दी या फिर जो दीवार खड़ी नहीं कर सकते थे उन्होंने दरवाजे ही निकाल लिए ताकि सीलिंग ही ना हो सके। परिणामस्वरूप निगम के दस्ते को वहां सीलिंग के नाम पर खानापूर्ति करनी पड़ी और ऐसी कॉमर्शियल बिल्डिंग सील होने के बावजूद भी बिना सीलिंग के रह गई। हाल-फिलहाल भाजपा नेता एवं कैबिनेट मंत्री विपुल गोयल के खास बताए जाने वाले व्यापारी नेता वासदेव अरोड़ा के समधी राजकुमारक कथूरिया के Hotel Welcome के अलावा Timpy Farm सहित ऐसे कई रेस्टोरेंट और शोरूम आदि हमें इस सीलिंग की कार्यवाही के दौरान देखने को मिले जहां सीलिंग के नाम पर नाममात्र की कार्यवाही कर खानापूर्ति की गई। एक्सईएन व एसडीओ स्तर के एक-दो संबंधित निगम अधिकारियों के मोबाईल फोनों और उनसे या उनके द्वारा इन दिनों में मिलने वाले लोगों की डिटेल निकाली जाए तो सारी की सारी स्थिति अपने आप स्पष्ट हो जाएगी कि किससे किसकी सैटिंग थी।
जहां तक बात है तोडफ़ोड़ की तो निगम प्रशासन ने सोमवार को तो केवल सेक्टर-10/12 डिवाइडिंग रोड़ पर कोर्ट मोड़ के पास धर्मा ढाबा, सिटी ढाबा आदि पर किसी व्यक्ति विशेष के कहने पर तोडफ़ोड़ कर वहां सीलिंग की जबकि वो जगह हुडा के अधिकार क्षेत्र में थी ना की नगर निगम के। हम यहां यह भी नहीं कह रहे कि वो ढाबे वैध थे, वो भी अवैध रूप से चल रहे थे और वहां रोज रात को दूसरे ढाबों की तरह शराब के दौर चलते थे लेकिन जिस प्रकार से उन ढाबों पर कार्यवाही की गई वो किसी का द्वेषभावना के तहत की गई नजर आ रही थी।
और अगर अब हम बात करें मंगलवार को अतिक्रमण के नाम पर की गई तोडफ़ोड़ की तो वो हमारे हिसाब से इसका कोई औचित्य नहीं था। अतिक्रमण के नाम पर जिस प्रकार से जेसीबी और हेमर द्वारा दुकानदारों के रैम्पों को तोड़ा जा रहा था वह न्यायसंगत नहीं था। अगर नगर निगम के दस्ते को तोडफ़ोड़ करनी ही थी तो सेक्टर-10/12 डिवाइडिंग रोड़ पर करती जहां शोरूम, जिम, होटल, रेस्टोरेंट, गेस्ट हाऊस, मैरिज गार्डन, बैंक्वेट हॉल आदि वालों ने लाखों-करोड़ों रूपये की कीमत से हुडा द्वारा बनाए गए साईकल टै्रक पर गैर-कानूनी रूप से अतिक्रमण कर रखा था चाहे वह ब्रार्दस दा ढाबा हो, टिम्पी फार्म हो, कांग्रेस नेता हो या फिर कोई ओर। लेकिन निगम ने यहां तोडफ़ोड़ की कोई कार्यवाही नहीं की। वो बात अलग है कि अब निगमायुक्त अनिता यादव ने उक्त डिवाईडिंग रोड़ पर तोडफ़ोड़ की गई जगह पर हरे-भरे पेड़ लगाने का आदेश देकर वास्तव में ही सराहनीय कार्य किया है।
उधर सीलिंग की इस कार्यवाही का शिकार हुए लोगों का कहना है कि उन्होंने अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए जैसे-तैसे करके अपना धंधा शुरू किया और अब उनके पेट पर लात मारी जा रही है। इनका कहना है कि जब वे अपने शोरूम बना रहे थे तो नगर निगम ने बनने ही क्यों दिए? उस समय तो नगर निगम के अधिकारी लाखों रुपए उनसे लेकर चलते बने और अब उन्हीं के द्वारा उनके काम-धंधे को बंद करवा दिया गया। इनका कहना है कि अब जब उनकी दुकानें सील की गई हैं तो निगम के उन अधिकारियों के खिलाफ भी कार्यवाही होनी चाहिए जिनके समय में ये मार्किट बनी थी और अब भी बन रही हैं।
काबिलेगौर रहे कि यहां लोगों ने रिहायशी नक्शे पास कराकर वहां निगम अधिकारियों की मिलीभगत से अवैध रूप से कमर्शियल संस्थान बना लिए हैं और हाल-फिलहाल बन भी रहे हैं।

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